ज़िंदगी में दोस्ती, यारी, अपनापा, सदभाव, प्रेम.....ये ही तो वो कुछ ऐसे बंधन हैं, कुछ सूत्र हैं, कुछ धागे हैं, कुछ रिश्ते हैं, कुछ कड़ियां हैं... जो मनुष्य को जीते रहने के लिए कहते हैं वरना हैवानों-इंसानों ने धरती की सूरत ऐसी बना दी, दानवों-मानवों ने मनुष्यता की परिभाषा कुछ यूं गढ़ दी कि यहां कोई सोचने समझने वाला इंसान खुश प्रसन्न मुग्ध होकर रह ही न सके, जी ही न सके। तो जीते रहने की ज़िद में जब कुछ ऐसे जाने/अजाने दोस्त मिल जाते हैं जिन्हें सुनना, पढ़ना, देखना, सोचना, महसूस करना ऊर्जा से भर देता हो, तनावों और दबावों से उबार लेता हो, कुछ बेहतर करने की ललक पैदा करता हो तो फिर वाकई दिल कहता है....थैंक्यू दोस्त।
चलिए, आज मैं उस दूर बैठे दोस्त को मशहूर क्रांतिकारी कवि पाश की कुछ कविताएं भड़ास के जरिए भेंट करता हूं।
यह एक कोशिश भी है कि भड़ास पर राजनीति, साहित्य, खेल, पत्रकारिता से जुड़ी भड़ास निकालने के साथ-साथ निजी एहसास से जुड़े़ भाव को भी शब्द देकर भड़ास का रूप दें ताकि दिल हलका हो सके, मन खुश हो सके। संभवतः यही वो चीज है जो हमारी आपकी जिंदादिली को बयान करेगी, बचाए रखेगी, आगे ले जाएगी... वरना शब्दों के जरिए क्रांतिकारी बंदूक दागने वालों की कमी थोड़े ही है इस दुनिया में।
फिलहाल भाषण देने का मूड नहीं है, कविता पढ़ाने को बेसब्र हूं। तो लीजिए जनाब, हुजूर, महाशय, महोदय....
यशवंत
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1-
बस कुछ पल और
तेरे चेहरे की याद में
बाकी तो सारी उम्र
अपने ही नक्श खोजने से फुरसत न मिलेगी
बस कुछ पल और
यह सितारों का गीत
फिर तो आसमान की चुप
सबकुछ निगल जाएगी....।
देख, कुछ पल और
चांद की चांदनी में चमकती
यह तीतरपंखी बदली
शायद मरुस्थल ही बन जाए
ये सोए हुए मकान
शायद अचानक उठकर
जंगल की ओर ही चल पड़ें....
2-
उनकी आदत है सागर से मोती चुग लाने की
उनका रोज का काम है, सितारों का दिल पढ़ना।
3-
हजारों लोग हैं
जिनके पास रोटी है
चांदनी रातें हैं, लड़कियां हैं
और 'अक्ल' है
हजारों लोग हैं, जिनकी जेब में
हर वक्त कलम रहती है
और हम हैं
कि कविता लिखते हैं...
4-
मेरे पास चेहरा
संबोधक कोई नहीं
धरती का पागल इश्क शायद मेरा है
और तभी जान पड़ता है
मैं हर चीज पर हवा की तरह सरसराता हुआ गुजर जाऊंगा
सज्जनों, मेरे चले जाने के बाद भी
मेरी चिंता की बांह पकड़े रहना
5-
प्यार आदमी को दुनिया में
विचरने लायक बनाता है या नहीं
इतना जरूर है कि
हम प्यार के बहाने (सहारे)
दुनिया में विचर ही लेते हैं
6-
आदमी के खत्म होने का फैसला
वक्त नहीं करता
हालात नहीं करते
वह खुद करता है
हमला और बचाव
दोनों आदमी खुद करता है।
7-
समय ओ भाई समय
कुछ तो कह दो
हम तुम्हारे संग हो क्या कुछ करें?
हमारा समय है गुनाहों भरा
कैसे पार जाएं हम इस भवजल से?
8-
तुम्हारे बगैर मैं बहुत खचाखच रहता हूं
यह दुनिया सारी धक्कमपेल सहित
बे-घर पाश की दहलीजें लांघकर आती-जाती है
तुम्हारे बगैर मैं पूरे का पूरा तूफान होता हूं
ज्वारभाटा और भूकंप होता हूं
तुम्हारे बगैर धरती का गुरुत्व
भुगत रही दुनिया की तकदीर होती है
या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुजरते अ-हादसे
मेरा भविष्य होते हैं
लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है
तुम्हारे बगैर मैं होता ही नहीं।
9-
आदमी का भी कोई जीना है
अपनी उम्र कव्वे या सांप को बख्शीश में दे दो
10-
जीने का एक और ढंग होता है
भरी ट्रैफिक में चौपाल लेट जाना
और स्लिप कर देना
वक्त का बोझिल पहिया।
मरने का एक और भी ढंग होता है
मौत के चेहरे से उलट देना नकाब
और ज़िंदगी की चार सौ बीस को
सरेआम बेपर्द कर देना।
(उपरोक्त सभी कविताएं मशहूर कवि पाश की हैं। उनका जन्म 9 सितंबर 1950 को पंजाब के तलवंडी सलेम, तहसील नकोदर, जिला जालंधर में हुआ था। 23 मार्च 1988 को अमेरिका लौटने से दो दिन पहले तलवंडी सलेम में अभिन्न मित्र हंसराज के साथ खालिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों के शिकार होकर शहीद हुए।)
दादा,सुन्दर है सब रचनाएं, बहुत ही धांसू हैं अमर शहीद पाश जी की रचनाएं.....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत हैं....दिल की गहराइयों से लिखी गयीं
ReplyDeleteदादा,
ReplyDeleteशाहदत के बाद इनको शायद लोगों ने जान होगा, या ना भी जन होगा मगर इनके लेखन में जो भाव हैं जो विचार हैं जो जीवन का दर्शन है वह बेहतरीन है,
आपको साधुवाद
complete poetry of paash in hindi, punjabi and other languages is available at my blog on paash at http://paash.wordpress.com
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