मेरी प्रयोगधर्मी कविता सुनकर
आयोजक महोदय घबड़ाये
थोडा हड़बड़ाये फिर बड़बड़ाये
ये कैसी कविता है
ये तो न हिन्दी है न इंग्लिश है
मैंने कहा जी हाँ ये हिंगलिश है ।
हिन्दी इंग्लिश का फ्यूजन है
हालांकि आलोचकों में
अभी थोडा कन्फ्यूजन है ।
रूढ़ीवादियों के लिए
मेरी कविता अधर्मी है
पर यकीन मानिये
यह विशुद्ध प्रयोगधर्मी है ।
मेरी हिंगलिश कविता
वास्तव में
कॉन्वेंटी कल्चर को अर्पित है
वी वांट हिन्दी इन इंडिया
चाहने वाले
हिन्दी प्रेमियों को समर्पित है ।
मेरी कविता
भविष्य की कविता है
बाद में रंग लाएगी
नयी नयी है अभी
लोगों को समझ में नही आएगी ।
भाषा की राजनीति में
धर्मनिरपेक्षता का
प्रयोग है मेरी कविता
बहुसंख्यक हिन्दी द्वारा
अल्पसंख्यक इंग्लिश को
पटाने का उत्जोग है मेरी कविता ।
मैंने आयोजक महोदय को समझाया
राजनीति का उन्हें
गुर बताया
हिन्दी बहुसंख्यक है
उसे पकडे रहेंगे तो
सांप्रदायिक कहलायेंगे
राजनीती की दौड़ में जनाब
पीछे रह जायेंगे ।
इसलिए आप भी
हिंगलिश कविता को
बढावा दीजिए
हिन्दी की कविता में
इंग्लिश के शब्द घुसेडिये
और बहुसंख्यक की अस्मिता का
अल्पसंख्यक को चढावा दीजिए ।
फिर देखिए आपके
जीवन में कितने
रंग भर जाते हैं
कैसे कैसे सम्मान , पुरस्कार
आपके हाथ आते हैं ।
कीमत की चिंता मत कीजिए
जिन्हें चुकानी है वो चुकायेंगे
नही चुका पाए तो
भांड में जायेंगे
अल्पसंख्यक इंग्लिश खुश रहेगी
धर्मनिरपेक्षता कायम रहेगी
यही क्या कम है
देश समाज व्यक्ति जहन्नुम में जाये
आपको क्या गम है ।
इसलिए कहता हूँ
वक्त की नब्ज को पहचानिए
धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के
फर्क को जानिए
प्रयोगधर्मी बनिए
हिंगलिश कविता अपानायिए
और भाषा की राजनीति में
सत्ता सुख पायिए॥
वरुण राय
वरूण भाई,गजब का पच्चीस नंबर का जूता इस्तेमाल करते हैं आप तो; इफ़ भड़ासी लोग आल्सो हिंगलिश यूस करे और स्पीकने लगे तो क्या सत्ता सुख के चांस हैं????
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