कभी -कभी अखबार सी लगती है जिन्दगी ,
किसी बयान से शुरू होकर मंडियों के भाव के बीच मंडराती जिन्दगी ,
aashwaashno aashwaashno aashwaashno और dilaason के बीच किसी hiroin के tasveer kee सी जिन्दगी ,
किसी बड़े ishthaar को antaane के लिए किसी hadse की कटी हुई ख़बर सी जिन्दगी ,
भूख और गरीबी को leel कर chadhte हुए शेयर bazar सी जिन्दगी ,
aatmhatya के बाद suside note me प्यार के kisse khojti जिन्दगी
Deependra
भईये अखबारों सी नहीं भड़सियों सी जिन्दगी लाओ.
ReplyDeleteसबकी वाट लगाओ.
गुरु हो जाओ शुरू.
जय जय भड़ास
रजनीश भाई सही कह रहे हैं भईया। भडास के रंग में रंग जाओ और छा जाओ सब पर। लगे रहो।
ReplyDeleteदीपेन्द्र भाई, आपने जो लिखा मन को अंदर तक छू गया..... खूबसूरत और गहरा सा लेखन...
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