23.5.08

akhabaar si jindgi

अखबार सी जिन्दगी
कभी -कभी अखबार सी लगती है जिन्दगी ,
किसी बयान से शुरू होकर मंडियों के भाव के बीच मंडराती जिन्दगी ,
aashwaashno aashwaashno aashwaashno और dilaason के बीच किसी hiroin के tasveer kee सी जिन्दगी ,
किसी बड़े ishthaar को antaane के लिए किसी hadse की कटी हुई ख़बर सी जिन्दगी ,
भूख और गरीबी को leel कर chadhte हुए शेयर bazar सी जिन्दगी ,
aatmhatya के बाद suside note me प्यार के kisse khojti जिन्दगी
Deependra

3 comments:

  1. भईये अखबारों सी नहीं भड़सियों सी जिन्दगी लाओ.
    सबकी वाट लगाओ.
    गुरु हो जाओ शुरू.

    जय जय भड़ास

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  2. रजनीश भाई सही कह रहे हैं भईया। भडास के रंग में रंग जाओ और छा जाओ सब पर। लगे रहो।

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  3. दीपेन्द्र भाई, आपने जो लिखा मन को अंदर तक छू गया..... खूबसूरत और गहरा सा लेखन...

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