:: सपना :::...
आफ़िस के इक कोने में
पुरानी दराज़ वाली टेबल पर
कुछ धूल भारी फ़ाइलें है
रखा है..computer..
और बैठा है उसके सामने..
एक Clark..
...
अभी-अभी टेबल पर
चपरासी चाय रख गया.
कुर्सी पीछे हल्का
खिसकाकार..
अपने उलझे बालों में
हाथ उलझाकर.
वो बीती बातों में उलझ गया...
.........
.....
एक वक़्त था..
जब वो आशिक़ होने का
दम भरता था..
तब बीवी बस माशुक़ा थी..
फ़िल्मों की कहानियाँ जैसे..
उन पर ही बनती थी..
छोटे छोटे से सपने थे
आँखों में जो पलते थे
एक घर का सपना भी
नाम सोच रखा था
घर का 'आशियाना'
......
किराए का मकान मिला.
उसको अपना तो लिया..
और अपने_पन की निशानियों से,
उसे सज़ा भी लिया..
घर के दरवाज़े पर
वेलकम का स्टिकर
चौख़ट पर पाँव के निशान
एक अदद कलर tv
एक सोफ़ा
फूलदान चीनी मिट्टी का..
कुछ प्लास्टिक के फूल..
जो ख़ूबसूरत से दिखते हैं
ख़ुशबू तो नही..पर टिकटे हैं
ये दीवारे ....जो सख़्त है
ज़िंदगी की तरह...बस..
बरसात मे पानी
रिसता है...
इस किराए के मकान की
दीवारों में..
और आफ़िस के घड़ियो के काँटो में
'आशियाने' का सपना
पिसता है..
..........
...
..........
...
सपनो को
दिल की अलमारी में
बंद कर..
जब लौटा वो
टेबल पर रखी चाय
ठंडी थी...
सपनो की तरह...
चाय पर जमी परत...
सपने ही तो थे..
अंगुली से परत किनारे कर..
एक घुट में पी गया उसे
उस घुट में थे..
ठंडे सपनों के शिकवे..
कुछ ख़ुद से गिले...
.......::::
मस्तो
पहली ही रचना में चौका मारा है। स्वागत है आपका।
ReplyDeleteमस्ते मस्ते मस्ते मस्ते मस्त कलंदर....
ReplyDeleteमस्तो जी,यशवंत दादा जिसे चौका कह रहे हैं दर असल वो तो शतक बनाने का खाता खुला है इसी तरह ठोके जाइये....
आपका स्वागत है...
bhai masto...
ReplyDeletebas itna hi kahunga..kamaal hai tumhaari kalam mein....
bhadaas nikaalte raho
:D :D
बहुत खूब। भडास परिवार में आपका स्वागत है। इसी तरह लिखते रहिए।
ReplyDeleteagaaz hi esa hai to anjaam! jaari rakhiye masto bhai. shubkamnayen.
ReplyDeleteसुंदर रचना . साधुवाद.
ReplyDeleteवरुण राय
मस्तो जी,
ReplyDeleteसुस्वागतम भडास परिवार में,
आते ही कलम कि जुगलबंदी, वाह वाह बेहतरीन.
परन्तु कविताओ के साथ आप अपना भडास भी फ़ोरें.
जय जय भडास