कुछ लोग जमाने में ऐसे भी तो होते हैं
दफ्तर में जो हंसते हैं घर जाकर रोते हैं
बीवी की नजरों में वो अच्छे हैं शौहर
बच्चों के कपड़ों को जो शौक से धोते हैं
जागा किये खिदमत में रातों में जो बीवी के
जाकर के वो दफ्तर में आराम से सोते हैं
पंखों में परिंदों के उड़ने की तमन्ना है
यो बात वो क्या समझें पिंजरे के जो तोते हैं।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६
भाई डॉ. रूपेश श्रीवास्तवआप डॉ. हैं, तमाम लोगों को जय-आरोग्य करते हैं, और हजारों लोग जिन्हें आप जीवन दान देते हैं, वह आपकी नियमित जय-जयकार करते हैं आपकी तो राग जयजयवंती में जय हो..विजय हो और सभी भड़ासियों की जय सुनकर आप खुश होते रहें, ऐसा आपका विराट ह्रदय हो। तो फिर एकबार हो जाए जय-जयकार..अविराम..अनंत।।जयभड़ास..जय यशवंत।।
ये बात वो क्या समझें पिंजरे के जो तोते हैं।
ReplyDeleteजो समझ कर भी न समझे वो खोते(गधे) हैं ॥
मैं भी कवि बन गया जय जय कार पढ़ कर बौरा गया हूं... खिसिर खिसिर... :)
गुरुदेव की जय,
ReplyDeleteबदले हुए मिजाज की ग़ज़ल से दिल गदगद हो गया.
वरुण राय
पंडित जी दंडवत,
ReplyDeleteआपके जयकार से तो बस अब जय जय जय ही करने को दिल करने लगा है.
इस करीबी रचना के लिए पुनास्च बधाई.
मजा आ गया. डॉक्टर साब का कवि बनते होना देख के .
जय जय भडास
बडे भईया प्रणाम। बहुत खूब कही आपने। पर महिलाएं कहीं नाराज न हो जाएं।
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