30.5.08

गरीबी से मरते हैं लोग, अपने दिल्ली में

आज सुबह सुबह अखबार पर पहली निगाह मारने के दौरान उसी खबर पर निगाह टिकी जहां गरीबी, मां और मौत के बारे में लिखा गया था। दिल्ली में आर्थिक तंगी से मां व बेटे ने जान दे दी।


ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं पर जब भी होती हैं, अंदर से हिला जाती हैं। इस बाजार के हमले ने उन लोगों को बिलकुल फटेहाल बना दिया है, जिनके पास दंद फंद नहीं है, जिनके पास नौकरी नहीं है, जिनके पास शिक्षा नहीं है। ऐसे लोग जो तीन पांच करके नहीं जी सकते, आखिर किस तरह ईमानदारी से जी सकते हैं। क्या इनकी मौत ही इनकी नियति है।


क्या सरकारों को भयंकर बाजार के इस दौर में हर व्यक्ति को रोजगार और हर परिवार को न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा की गारंटी नहीं देनी चाहिए?

पर सवाल वही है कि जब हर कोई अपना नोट और वोट बनाने में लगा हो तो जनता और उसके जीवन से जुड़े सवालों पर भला कौन सोच सकता है।


जय भड़ास
यशवंत

3 comments:

  1. क्या सरकारों को भयंकर बाजार के इस दौर में हर व्यक्ति को रोजगार और हर परिवार को न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा की गारंटी नहीं देनी चाहिए?

    ish sawaal ka ek hi jawaab hai agar wo sab garib janata ko baant degi to unkaa kya hoga ,ye to yahaa yaani (sattha me) isiliye to aate hai ki dat kar kha sake aur 7 pusto ke liye bhi lage haath intjaam kar de .unhe kya fark padta hai ki janata jiye balki fark to tab padta hai jab janata marti hai .are bahi jab jana maregi tabhi to unke naam par paise ki ugaahi ho paayegi na .

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  2. दादा,इससे ज्यादा डरावनी और शर्मनाक बात किसी मुल्क के लिये क्या हो सकती है,चलिये हम ही कुछ सार्थक पहल करने का प्रयास करेंगे अगर सुअर राजनेता नहीं करते तो...........

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  3. दादा,

    बडा भयंकर है ओर हमारे समाज की सच्चाई भी। मिडिया हाउस के करता धरता सरकार की हां में हां मिलाते हुए हमारे लोगों को हमारी अमीरी का भास करवाती रहती है। मगर इनकी बात उठाने वालों को चुप करा दिया जाता है ये हाल में दूरदरशन पर भी दिखा।

    सच में मिडिया हाउस में जब तक कलुआ जैसे लोग बरकरार हैं मुद्दों कि बात करना ओर इन सवयँ-भु बुद्दीजीवी से उम्मीद रखना बेकार है ओर यही जगह है जहां भडास की सारथकता है।

    जै जै भडास

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