दोस्त जीवन में प्यारे वही है सगा
वक्त पड़ते ही फौरन जो दे दे दगा
बाद सोने के तेरे रहे जो जगा
ऐसे महमां को जल्दी तू घर से भगा
भाग जाए न ले के वो कपड़े तेरे
झट से बंदर को जाकर तू छत से भगा
कच्ची इमली सड़क पर उछलने लगी
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
तेरी पॉकेट को काटा कोई गम नहीं
नंग वो हो गया तेरा रुतबा बढ़ा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा
दोस्त के रूप में केंचुए ही मिले
सिंह साशि के नीरव तू तेवर दिखा।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६
( श्रीमंत यशवंतजी, डॉ।रूपेश श्रीवास्तवजी, बंधु राकेश के.झा, भाई अबरार अहमद और सुश्री रछंदाजी आप सभी की बहुमूल्य टिप्पणी के लिए थैंक यू वेरी मच...)
जय भड़स। जय यशवंत
प्रभु जी,अब तो राय बदलनी होगी कि "दोस्त के रूप में केंचुए ही मिले" भड़ास पर मिले सारे दोस्त तो एनाकोन्डा अजगरों से कम नहीं हैं जो अपने यारॊं की तकलीफ़े निगल जाते हैं और हजम करके ही हिलते हैं,रचना भनभनाट है भगवन.....
ReplyDeleteपंडित जी को प्रणाम.
ReplyDeleteपंडित जी ये क्या लिख दिया , जो लिखा सो लिखा मगर हम भडासी मित्रों को केंचुआ अब तो मत समझो. डॉक्टर साब ने कहा ये सब अजगर अनाकोंडा हैं मगर सच्चे अर्थों में ये संवेदना से भरे पूरे बरगद हैं और इस बात को हमारे मनीष भडासी और शशिकांत भडासी ने साबित किया है.
वैसे आज के परिपेक्ष में आपकी कविता है बड़ा कटु पूर्ण सत्य.
जय जय भडास
बडे भईया प्रणाम। बहुत खूब।
ReplyDeleteneeravji kya khub kaha aapne "dosto ke roop mai kechuwe hi mile " sacchai to yahi hai ki ish duniya me 100 me se 99 dost to kechuwe aur na jane kya -kya unse bhi khartnaak hai.
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