7.5.08

पृथ्वी की पीड़ा

पर्यावरण को समर्पित एक रचना-
पृथ्वी की पीड़ा
आज की तरक्की के रंग ये सुहाने हैं
डूबते जहाजों पर तैरते खजाने हैं
गलते हुए ग्लेशियर हैं सूखते मुहाने हैं
हांफती-सी नदियों के लापता ठिकाने हैं
टूटती ओजोन पर्तें रोज आसमानों में
धूंआ-धूंआ वादी में हंसते कारखाने हैं
कटते हुए जंगल के लापता परिंदों को
आंसुओं की सूरत में दर्द गुनगुनाने हैं
एटमी प्रदूषण के कातिलाना तेवर हैं
बहशी ग्लोबल वार्मिंग के सुनामी कारनामे हैं
आतिशों की बारिश है प्यास के तराने हैं
पांव बूढ़ी पृथ्वी के अब तो डगमगाने हैं।
पं. सुरेश नीरव
मो,९८१०२४३९६६( डॉ. रूपेश श्रीवास्तव, रजनीश के.झा और वरुण राय को प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद। )।। जय भड़ास।। जय यशवंत ।।

5 comments:

  1. पंडित जी,इ तौ बहुतै गल्लत बात जनाए पड़त है कि हम तारीफ़न के लंदन ब्रिज बांधे पड़े हैं और आप सब हैं कि कह रहे हैं
    जय भड़ास।। जय यशवंत ।।
    कभी हमरी भी एकाध दांई जय होय जाए तो मार फूल फाल के कुप्पाए जाएंगे वरना हम कहै लगबै कि
    जय क ख ग घ
    जय च छ ज झ
    ..........
    ..........
    जय क्ष त्र ज्ञ
    जय A B C....Z
    पर हर हाल में जय जय भड़ास
    खी खी खी खिसिर खिसिर दंतनिपोरी :)

    ReplyDelete
  2. शानदार है नीरव भाई। ईश्वर आपको लंबी उम्र बख्शे।

    जय डा. रूपेश
    जय नीरव
    जय यशवंत
    जय क ख ग
    जय क्ष त्र ज्ञ
    जय ए बी सी


    पर आखिरकार जय भड़ास

    ReplyDelete
  3. बडे भईया प्रणाम। लोगों को इस कविता के माध्यम से जागरूक करने के लिए शुक्रिया। लिखते रहिए। आपकी जरूरत है हम सबको।

    ReplyDelete
  4. पंडित जी,
    हमारी पृथ्वी के दर्द को बड़ा मार्मिक रूप दिया है आपने. सच में दिल को छु गयी. थोडा सा दुखी भी हुआ, मगर

    जय रुपेश
    जय यशवंत
    जय सुरेश
    जय जय जय जय

    जय जय भडास
    अब मन प्रफ्फुल्लित है.

    ReplyDelete
  5. गुरुदेव,
    रजनीश भाई और अबरार भाई ने कह ही दिया .
    अब मैं क्या बोलूँ .
    जय हो .
    जय जय भड़ास.
    वरुण राय

    ReplyDelete