( हाल ही में एक डाकुमेंटरी को शूट करने के लिए एक ख़ास जगह गया ..... ज़ाहिर है अनुभव भी ख़ास था ! मेरा एक कनिष्ठ साथी हिमांशु भी साथ था ..... उसका इस अनुभव पर क्या कहना है पढ़ लें !)
हाल में पुराने भोपाल स्थित एक वृद्धाश्रम गया था । मयंक सक्सेना जी कि एक डॉक्युमेंटरी कि शूट के सिलसिले में । ऐसी जगहों पर आमतौर पर मेरे अन्दर का कवि जाग जाता है , पर उस दिन एक ऐसा मंज़र देखा जिसको देख कर मेरे अन्दर के कवि ने , मेरे अन्दर के पत्रकार को जगाया कि उठो और देखो तुम्हारे लिए सूचना है क्या तुम उसे स्टोरी बना सकते हो ?
मैं भी अपने सभी पत्रकार भाइयों को ये सूचना दे रहा हूँ । मैं तो कोशिश कर ही रहा हूँ , अगर किसी सज्जन से बन पड़े तो इसे स्टोरी बनायें , एक स्टोरी जो किसी सार्थक अंत की ओर हो । क्यूंकि कहा जा रहा है कि मीडिया में खबरें नही हैं इसलिए खली स्टोरी बन रहा है --आसरा नाम का ये वृध्धाश्रम पुराने भोपाल में बाबे अली स्टेडियम के सामने स्थित है । यहाँ कुल ९६ वृद्ध लोगों का परिवार है , जिनमे से एक हैं पी सी शर्मा ।
१४ फ़रवरी १९०८ इनकी जन्मतिथि है । १०० साल पूरे कर चुके हैं पर हैं एक दम चुस्त दुरुस्त और बात चीत में कहते हैकि एक अपनी १०० साल की एक उम्र तो मैंने जी ली अब आज तो मैं ९० दिन का बच्चा हूँ ....ये जीवट है उस व्यक्ति का , हाँ कुछ साल पहले गाय ने मार दिया था तो पेट में जख्म हो गया था , डॉक्टर ने ज्यादा चलने से मना किया है तो ज्यादातर समय व्हील चेयर पर रहता है , लेकिन फिर भी कैमरा ट्राई पोड उठा कर उसे शिफ्ट कर देता है .....ज़िंदगी पता नही कब साथ छोड़ दे पर अंग्रेज़ी उच्चारण सुधारना चाहता है , इसके लिए मुझसे एक डिक्शनरी मांगता है पर फ्री में नही , जेब में हाथ डाल कर पैसों के लिए टटोलता है....वह और भी कुछ चाहता है....
दरअसल शर्मा जी ने ब्रिटिश वायु सेना जिसे तब रोंयल एयर फोर्स कहा जाता था , के लिए १९३९ से १९५२ तक काम किया है । और वह अपनी इस सेवा के लिए ब्रिटिश सरकार से पेंशन चाहते हैं । कई चिट्ठियां लिखी हैं , पर पहले तो ब्रिटिश सरकार ने ये कह कर टाल दिया की आपकी सेवा का कोई प्रमाण नही है , जब शर्मा जी ने अपने प्रमाण पत्र भेजे जो कहा गया चूंकि भारत १९४७ में आजाद हो गया तो आपको ५२ तक फोर्स के लिए काम करने की जरुरत नही थी आपका सेवा काल सं ४७ तक ही माना जाएगा। और चूंकि पेंशन के लिए कम से कम १० साल की सेवा ज़रूरी है , इसलिए आपको पेंशन नही मिल सकती ।
शर्मा जी कहते हैं कि आज़ादी के वक्त वह पाकिस्तान में तैनात थे उनसे कहा गया कि रोयाल एयर फोर्स उसी तरह उनकी सेवा लेती रहेगी , वह फोर्स के नियमित कर्मचारी रहेंगे लेकिन जब पाकिस्तान में दंगे होने लगे तो शर्मा जी ने अपना नाम फकीर चंद रखा और कई मील पैदल चल के जनवरी कि ठंडक में नंगे बदन सरहद पार करके १९५३ में भारत पहुचे । उनके पास सभी प्रमाण मौजूद हैं कि वह १९५२ तक रोयाल एयर फोर्स के नियमित कर्मचारी रहे हैं।
शर्मा जी कहते हैं कि लड़ाई पैसों कि नही इन्साफ की है ।
मैं अपने सभी पत्रकार भाइयों से अनुरोध करता हूँ कि अगर आपको लगता है कि शर्मा जी पर एक सार्थक स्टोरी बन सकता है तो कृपया जल्दी करें क्यूंकि शर्मा जी के पास वक्त नही है ...........और फ़िर आप भी तो खली से ऊब गए होंगे !
धन्यवाद !
- हिमांशु बाज्पयी
असली पोस्ट देखे http://cavssanchar.blogspot.com/2008/05/blog-post_13.html
भाई मयंक,
ReplyDeleteखबर तो ये है, और बेहतरीन खबर है, मगर एक पत्रकार के लिए, लाला जी के लिए नहीं और हमारे बेचारे खबरों का चयन करने वाले जो बुजुर्ग हैं उनको लाला जी को खुश करने वाली खबर चाहिए ना की सामाजिक और मानव से जुडी भावनाओं की. चयन के लिए जिम्मेदार लोग लाला को तेल लगाने में विश्वास रखते हैं, ये ही कारण है की खबर का का एक्सक्लूसिव होना ट्रेन में मूंगफली मिलना बड़ाबड़ हो गया है. हमारे ये नपुन्शक बुजुर्ग पत्रकारों ने नयी पौध तक में अपना वायरस डालने की कोशिश की है. मेरी दुआ है नयी पौध को की इस बीते हुए सड़े कीडे से इन्हें बचा के रखे जो वापस अपनी दुनिया में लोटे, लाला को तेल लगाने की प्रक्रिया से अलग.
जय जय भडास
काफ़ी अच्छी खबर का माद्दा है आपकी इस जानकारी में, लेकिन रजनीश जी ने सही कहा है कि वो एक पत्रकार के लिये है, लालाओं को खुश करने वाले लोगो के लिये नही।
ReplyDeleteफ़िर भी मुझे ये लगता है कि भोपाल मे भडास से जुडे हमारे साथी इस खबर के लिये कुछ ना कुछ अवश्य करेंगे और निश्वित ही शर्मा जी को न्याय दिलाने के लिये लिखेंगे।
मयंक भाई,मैं हमेशा से पत्रकारिता की प्राचीनतम परिभाषा का पक्षधर रहा हूं "पतनात त्रायते इति पत्रकारः"... यानि जो पतन से मुक्ति दिलाये वही पत्रकार है। सुन्दर बात बतायी लेकिन ये सिर्फ़ भड़ास पर ही प्रकाशित हो सकती है बाकी लोगों को इसमें दिलचस्पी न होगी क्योंकि खली बिकता है उसकी खबर बिकती है शर्मा जी नहीं.....
ReplyDeleteमयंक भाई,
ReplyDeleteख़बर तो आपने बना ही दी है. और उसे भड़ास जैसा माध्यम भी मिल गया है. जल्दी ही आप इसका परिणाम भी देख लेंगे.
वरुण राय