बाकी है
जम के चोरी कीजिए दूकान बाकी है
छोड़िए कटपीस पूरा थान बाकी है
बह गई कश्ती अभी तूफान में
कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है
रुक न पाएगी कभी फरमाइशें उनकी
जब तलक मेरे बदन में जान बाकी है
वैसे तो चलती है कैंची-सी जुबां उनकी
चुप रहेंगे मुंह में जब तक पान बाकी है
लिख दिए मिसरे ग़ज़ल के उनके होंठों पर
उस फसाने का मगर उन्वान बाकी है
है फरिश्तों से भी ऊंचा आज वो इनसान
जिसमें थोड़-सा अभी ईमान बाकी है
इस कदर जज्बात को निगला मशीनों ने
यंत्र-सा चलता हुआ इनसान बाकी है
कान में नीरव के बोला बेहया लीडर
लूटने को पूरा हिंदुस्तान बाकी है।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
( पूर्व गजल पर श्री यशवंतजी, डॉ. रूपेश श्रीवास्तव और रजनीश के.झा की स्वादिष्ट टिप्पणी हेतु धन्यवाद।)
लूटने को पूरा हिंदुस्तान बाकी है।
ReplyDeleteमगर नीरव की कविता अभी बाकि है।
पंडित जी जब तक आपकी कविता बाकी रहेगी कोई कुछ नही लूट सकता कयौंकि महफ़िल अभी जारी है। :-)