14.6.08

उधारी खूब तुम रखना

एक कता...
झिड़कना मत झिड़कने में कोई अपना नहीं रहता
तुम्हें वो जड़ से खोदेगा जो मुंह से कुछ नहीं कहता
सभी लोगों से मिलने में उधारी खूब तुम रखना
उधारी का महल कर्जे की तोपों से नहीं ढहता।
पं. सुरेश नीरव

5 comments:

  1. पंडित जी, यावज्जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत...... मजा आ गया...

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  2. नीरव जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी...। मजा आ गया...। आपकी कविता पढ़कर लगा कि सचमुच आप मंच पर खड़े होकर कविता पढ़ रहे है...। जनता आपको भाव विभोर होकर सुन रही है..। आप हमेशा कविता लिखते रहे..। जिससे हम जैसे छोटे कवियों को भी आपसे मार्गदर्शन मिलता रहे..
    मनोज कुमार दीक्षित सहारा "समय"

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  3. नीरव जी आपकी कविता बहुत अच्छी लगी...। मजा आ गया...

    मगर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है की आपकी ये कविता जगजीत सिंह जी की मशहूर ग़ज़ल
    " परखना मत परखने मी कोई अपना नही रहता "........ से कुछ ज्यादा ही मेल खा रही है......वीनस केशरी

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  4. पंडित जी प्रणाम,

    जीवन के इस अदभुत ज्ञान के लिये आपको साधुवाद और सभी भडासीयों से अपील।

    ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत...... :-P

    जय जय भडास

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  5. माना की मुखते खाख से बढकर नहीं हूँ मैं लेकीन हवा क रहमो करम पर नहीं हूँ मैं इन्सान हूँ धर्कते हुये िदल पे हाथ रख यो डूब कर न देख समंदर नहीं हूँ मै माना की मुखते खाख से बढकर नहीं हूँ ?


    Pradeep Gupta

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