व्यंग्य
अमीर बनाने का साफ्टवेयर
विवेक रंजन श्रीवास्तव
रामपुर, जबलपुर.
युग इंटरनेट का है . सब कुछ वर्चुएल है. चाॅद और मंगल पर भी लोग प्लाट खरीद और बेच रहे है. धरती पर तो अपने नाम दो गज जमीन नहीं है, गगन चुम्बी इमारतों में, किसी मंजिल के किसी दडबे नुमा फ्लैट में रहना महानगरीय विवषता है, पर कम्प्यूटर के माध्यम से अंतरजाल के जरिये दुसरी दुनियां की राकेट यात्राओं के लिये अग्रिम बुकिंग हो रही है , इस वर्चुएल दुनियाॅ में इन दिनों मैं बिलगेट्स से भी बडा रईस हॅूं . हर सुबह जब मैं अपना ई मेल एकाउण्ट, लागइन करता हॅूं , तो इनबाक्स बताता है कि कुछ नये पत्र आये है. मैं उत्साह पूर्वक माउस क्लिक करता हॅंॅू , मुझे आषा होती है कि कुछ संपादकों के स्वीकृति पत्र होगें, और जल्दी ही में एक ख्याति लब्ध व्यंग्यकार बन जाऊॅंगा, पत्र पत्रिकायें मुझ से भी अवसर विषेष के लिये रचनाओं की माॅग करेंगे. मेरी मृत्यु पर भी जाने अनजाने लोग शोक सभायें करेंगे, शासन, मेरा एकाध लेख, स्कूलों की किसी पाठ्यपुस्तक में ठॅूस कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेगा, हो सकता है मेेरे नाम पर कोइै व्यंग्य अलंकरण बगैरह भी स्थापित हो जावे. आखिर यही सब तो होता है ना, पिछले सुप्रिसद्व व्यंग्य धर्मियों के साथ पर मेरी आषा निराषा में बदल जाती है, क्योंकि मेल बाक्स में साहित्यिक डाक नहीं , वरन अनजाने लोगो की ढेर सी ऐसी डाक होती है, जिससे में वर्चुएली कुछ और रईस बन जाता हॅंू.
मुझे लगता है कि दोहरे चरित्र और मल्टिपल चेहरे की हो तरह ई मेल के इस जमाने में भी हम डाक के मामले में दोहरी व्यवस्था के दायरे में है. अपने विजिटिंग कार्ड पर, पत्र पत्रिका के मुख पृष्ठ पर वेब एड्र्ेस और ई मेल एड्र्ेस लिखना, स्टेटस सिंबल माज बना हुआ है. जिन संपादको को मैं ई मेल के जरिये फटाफट लेख भेजता हॅू, उनसे तो उत्तर नहीं मिलते, हाॅ जिन्हें हार्ड प्रिंट कापी में डाक भेजता हॅंू , वे जरूर फटाफट छप जाते है , मतलब साफ है, या तो साफ्टवेयर, फान्टस मिल मैच होता है, या मेल एकाउष्ट खोला ही नहीं जाता क्योंकि पिछली पीढी के लोगो ने पत्रिका का चेहरा सामयिक और चमकदार बनाने के लिये ई मेल एकाउण्ट क्रियेट करके उसे मुख पृष्ठ पर चस्पा तो कर लिया है, पर वे एकाउण्ट आपरेट नहीं हो रहे. वेब साईट्स अपडेट ही नहीं की जाती , हार्ड कापी में ही इतनी डाक मिल जाती है कि साफ्ट कापी खोलने की आवष्यकता ही नहीं पडती . ई सामग्री अनावरित, अपठित वर्चुएल रूप में ही रह जाती है ,
सरकारी दफ्तरों में पेपर लैस आफिस की अवधारणा के चलते इन दिनों प्रत्येक जानकारी ई मेल पर, साथ ही सी.डी.पर और त्वरित सुविधा हेतु हार्ड कापी पर भी बुलाते है. समय के साथ चलना फैषन है.
यदि मेरे जैसा कोई अधिकारी कभी गलती से , ई मेल पर कोई संदेष अपने मातहतो को प्रेषित कर, यह सोचता है कि नवीनतम तकनीक का प्रयोग कर सस्ते में, शाध्रिता से, कार्य कर लिया गया है, तो उसे अपनी गलती का आभास तब होता है , जब प्रत्येक मातहत को फोन पर अलग से सूचना देनी पडती है, कि वे कृपया अपना ई मेल एकाउण्ट खोलक देखें एवं कार्यवाही करें,
ई वर्किग का सत्य मेरे सम्मुख तब उजागर हुआ, जब मेरे एक मातहत से प्राप्त सी.डी. मैने अपने कम्प्यूटर पर चढाकर पढनी चाही. वह पूर्णतया ब्लैंक थी. पिछले अफसर के कोप भाजन से बचने के लिये , कम्प्यूटर पर जानकारी न वनने पर भी , वे लगातार कई महीनों से ब्लैंक सी.डी. जमा कर देते थे. और अब तक कभी पकडे नहीं गये थे. कभी किसी बाबू ने कोई पूछताछ करने की कोषिष की तो सी.डी.न खुलने का , साफ्टवेयर न होने या सी. डी. करप्ट हो जाने का , वायरस होने वगैरह का स्मार्ट बहाना कर वे उसे टालू मिक्चर पिला देते थे. ई गर्वनेंस का सत्य उद्घाटित करना हो तो पाॅच-दस सरकारी विभागों की वेब साईटस पर सर्फिग कीजिये. नो अपडेट महीनों से सब कुछ यथावत संरक्षित मिलेगा अपनी विरासत से लगाव का उत्कृष्ट उदाहरण होता है ये साइट्स
सरकारी वर्क कल्चर में आज भी ई वर्किग , युवा बडे साहब के दिमाग का फितूर माना जाता है दृ अनेक बडे साहबों ने पारदर्षिता एवं शीध्रता के नारे के साथ, पुरूस्कार पाने का एक साधन बनाकर, प्रारंभ करवाया . हौवा खडा हुआ विभाग का वेब पेज बना. पर साहब विषेष के स्थानांतरण के साथ ही ऐसी वबे साईट्स का हश्र हम समझ सकते है.
कुछ समझदार साहबों ने आम कर्मचारी की ई अज्ञानता का संज्ञान लेकर विभाग के विषिष्ट साफ्टवेयर, विषेष प्रषिक्षण, एवं कम्प्यूटर की दुनियाॅ में तेजी से होते बदलाव तथा कीमतों में कभी के चलते, कमाई के ऐसे कीर्तिमान बनाये, जिन पर कोई अंगुली भी नहीं उठा सकता . मसला ई गर्वनेंस का जो है .बौद्विक साफ्टवेयर कहाॅ, कितने का डेवेलेप हो यह केवल बडे, युवा साहब ही जानते है, अस्तु
जब से मैने एक नग ब्लाग बनाकर अपना ई मेल पता सार्वजनिक किया है , मैं दिन पर दिन अमीर होता जा रहा हॅंू वर्चुएल रूप में ही सही. गरीबी उन्मूलन का यह सरल, सुगम ई रास्ता मैं सार्वजनिक करना चाहता हॅू. इन दिनों मुझे प्रतिदिन ऐसी मेल मिल रही है. जिनमे मुझे लकी विनर, घोषित किया जाता है. या दक्षिण आफ्किा के किसी एड्वोकेट से कोई मेल मिलता है, जिसक अनुसार मेरे पूर्वजों में से कोई ब्लड रिलेषन, एअर क्रेष में सपरिवार मारे गये होते है मेरी संस्कृति एवं परम्परा के अनुसार यह पढकर मुझे गहन दुख होना चाहिये, जो होने को ही था, कि तभी मैने मेल की अगली लाइन पढी मेल के अनुसार अब उनकी अकूत संपत्ति का एकमात्र स्वामी में हॅंू , और एडवोकेट साहब ने बेहद खुफिया जाॅच के बाद मेरा पता लगाकर, अपने कत्र्तव्य पालन हेतु मुझे मेल किया है. और अब लोगल. कार्यवाहियों हेतु मुझ से कुछ डालर चाहते है.
मैं दक्षिण अफ्रिका के उस समर्पित कत्र्तव्य निष्ठ एड्वोकेट की प्रषंसा करता हुआ अपने गांव के उस फटीचर वकील की बुराई करने लगा, जो गांव के ही पोस्ट आफिस में जमा मेरे ही पैसे , पास बुक गुम हो जाने के कारण , मुझे ही नहीं दिलवा पा रहा है. यह राषि मिले तो मैं अफ्रिका के वकील को उसके वंाधित डालर देकर उस बेहिसाब संपत्ति का स्वामी बनूं, जिसकी सूचना मुझे ई मेल से दी गई है. इस पहले पत्र के बाद लगातार कभी दीवाली, ईद,क्रिसमस, न्यूईयर आदि फेस्टिवल आफर में, कभी किसी लाटरी में, तो कभी किसी अन्य बहाने मुझे करोडों डालर मिल रहे है, पर उन्हें प्राप्त करने के लिये जरूरी यही होता है कि मैं उनके एकाउंट में कुछ डालर की प्रोसेसिंग फीस जमा करूं मैं गरीब देष का गरीब लेखक, वह नहीं कर पाता और गरीब ही रह जाता हॅू, तो इस तरह, नोषनल रूप से मैं इन दिनों बिल गेट्स से भी अमीर हॅू, अपने एक अद्द, फ्री, ई मेल एडेस के जरिये,
जब मैने ई मेलाचार के इस पक्ष को समझने का प्रयत्न किया तो ज्ञात हुआ कि ई मेल एड्र्ेसेस, खरीदे बेचे जाते है , कोई है जो मेरा ई मेल एड्र्ेस भी बेच रहा है . स्वयं तो उसे बेचकर अमीर बन रहा है , और मुझे मुर्गा बनाने के लिये , अमीर बनाने का प्रलोभन दिया जा रहा है . अरबों की आबादी वाली दुनियां में 2-4 लोग भी मुर्गा बन जाये तो, ऐसे मेल करने वालों को तो, बेड बटर का जुगाड हो ही जायेगा ना हो ही जाता है.
अब मुझे पूर्वजों के अनुभवों से बनाई गई कहावतों पर संषय होने लगा है. कौन कहता है कि ’’लकडी की हाॅडी बार-बार नहीं चढती ’’ ? कम से कम अमीर बनाने ये मेल तो यही प्रमणित कर रहे है, अब मैं यह भी समझने लगा हॅू कि मैं स्वयं को ही बेवकूफ नहीं समझता मेरी पत्नी, सहित वे सब लोग जो मुझे इस तरह के मेल कर रहे है, मुझे निषुद्व बेवकूफ ही मानते है, वे मानते है कि मै उनके झांसे में आकर उन्हें उनके बांधित ’ डालर ’ भेज दूंगा. पर में इतना भी बेवकूफ नहीं हूॅ मैने वर्चुएल रईसी का यह फार्मूला निकाल लिया है, और बिना एक डालर भी भेजे, मैं अपनी बर्चुएल संपत्ति को एकत्रित करता जा रहा हूं,
तो आप भी अपना एक ई मेल एकांउट बना डालिये ! बिल्कुल फ्री उसे सार्वजनिक कर डालिये. और फिर देखिये कैसे फटाफट आप रईस बन जाते है. वर्चुएल रईस.
Posted by vivek ranjan shrivastava
विवेक भाई,ये संसार जिस महाविराट साफ़्टवेयर "माया" के अंतर्गत चल रहा है उसके पार अगर देखें तो कागज के नोटों की हार्ड कापी और कथित मूल्यवान धातुओं की चमक है वह सब बस वर्चुअल ही है जो बस दुनिया के स्क्रीन से बाहर किसी काम नहीं आती ये दुनिया क्या एक वर्चुअल गेम नही है जिसे कि दुनिया बनाने वाला ईश्वर नाम का मासूम सा बच्चा खेल रहा है कभी भी किसी को भी "डिलीट" कर देता है.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है पेले रहिये ऐसे ही.....
जय जय भड़ास