जरा गौर से देखिये इस तस्वीर को, शायद आपको वो दिखे जो मुझे भी दिखा ?
कुछ दिन पहले यशवंत जी ने एक पोस्ट डाली थी की नॉएडा में हिजडे एक वाहन में जा रहे थे और वहां पे लिखा था प्रेस। सच में क्या प्रेस का टैग लगना ऐसा है, जरा गौर से देखिये इस सरकारी मुलाजिम को जो मुंबई बस का कंडक्टर है मगर डिब्बे पे "सकाळ" एक मराठी दैनिक का लेबल, महोदय आप सरकारी कर्मचारी हो या इस अकबार के विज्ञापन प्रतिनिधि...
वैसे ये बड़ी बात नही है और कमोबेश सभी अखबार का विज्ञापन विभाग इस कुकृत्य को अंजाम देता है, अपने अखबारनवीश होने का धौंस देकर मनमाफिक विज्ञापन प्रचारित करवा लेता है।
तात्पर्य केवल इतना की मित्र ये व्यावसायिक दौर का समाचारपत्र व्यवसाय है, विचारों की बेला नही और अपने आपको पत्रकार कहने वाले हमारे मित्र इन व्यवसायिक घराने के जी हुजूरी करने वाले चमचे से ज्यादा नही, जिसे चमचागिरी पसंद नही वो अपने घर में रहे, लाला जी के अखबार को उसकी कोई जरूरत नही।
जय जय भड़ास
बहुत अच्छा !
ReplyDeleteभाई,प्रेस लिखने का आप दूसरा आशय ले रहे हैं दरअसल उन लोगों ने इस्तरी का धंधा डाला होगा जिसको अपने वाहन पर लिख रखा होगा :)
ReplyDeleteसकाळ से कोई शिकायत नहीं रखनी चाहिये उसी के भय से तो लोग टिकट खरीद रहे हैं,अब देखिये यू.पी. बिहार में सकाळ नहीं आता तो लोग रोडवेज की बस में आसानी से टिकट नहीं लेते :)
जय जय भड़ास