12.7.08

अंटी अपनी बापू की

सबसे पहले में ये जानना चाहता हु, क्या दिल्ली की हर घटना राष्ट्रीय न्यूज़ है ? हिंदुस्तान का चर्चित आरुसी हत्या कांड - सीबीआई के अनुसार डॉ तलवार हत्यारे नही है बल्कि तीनो नौकर है। लगातार पिचले ५० दिनों से चले आ रहे इस ड्रामे में मीडिया अब पुलिस को गुनाहगार मन रही है। साथ ही डॉ तलवार के परिवार वालो से पुलिस के खिलाफ जहर भी उगलवा रही है। क्या मीडिया कभी अपने को भी देखती है कि वो कहा खड़ी है ? तलवार परिवार कि बदनामी के पीछे .................... क्या मीडिया कि भूमिका नही ? या फिर चिट अपनी, पट अपना और अंटी अपनी बापू की ,

२४ ghante khabro के पीछे भागने wale कब तक किसी chij की parwah किए बिना अपनी खबरे देते रहेंगे, मीडिया वाले ही बताये क्या तीनो नौकर (सीबीआई अनुसार हत्या के अपराधी घोषित है ) को अदालत में अपराधी साबित किया जा सकता है, अगर ये भी पाक साफ सिद्ध हो गए तो फिर मीडिया किस पर आरोप लगयेगा।

भारत भूषण
सतना

4 comments:

  1. भाई,मीडिया की आर्थिक रीढ़ सम्हाले जो लाला जी टाइप के लोग हैं वे समाचार से संबंधित जनता की प्रतिक्रिया को समझते हैं कि ये भी मनोरंजन का एक प्रकार है हमारी जनता के लिये,संवेदनाएं मर चुकी हैं लोग इस तरह के समाचारों को मात्र एक "मिस्ट्री मूवी" की तरह एन्ज्वाय करके भूल जाते हैं तो बस लाला जी इसीलिये इन्हें कवरेज दिलाते हैं। मीडिया क्या है?हम और आप जैसे लोग जो खबरों को सूंघते,कुरेदते,खोदते हैं हमारा काम सूचना को प्रसारित करना है न तो हम न्यायाधीश हैं न ही जांच एजेंसी तो जिसे जो काम करना है वो कर रहा है लेकिन जनता क्या कर रही है??????
    मोनिन्दर सिंह पंढेर अब कितने लोगों को याद है और कितने लोगों ने संपादको को पत्र लिखा इस बारे में कि क्या हुआ उस शैतान आदमखोर सुरेन्द्र कोली का??? मनोरंजन की अफ़ीम में टुन्न जनता के लिये लाला जी सही करत हैं उनके फ़ायदे के लिहाज से......
    जागो रे...जागो रे.... जागो रे...
    जय जय भड़ास

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  2. बड़े भाई,
    पत्रकारिता, उसके सिद्दांत और कार्यशैली सब गयी लाला जी के गांड में. टी आर पी और रीडरशिप के चक्कर ने हमारे मीडिया को घनचक्कर बना दिया है क्योँकी पत्रकार अब पत्रकार रहे नहीं, और चाकरी करने वाले अपने विचार और सिद्दांत को रख नहीं सकते सो दुकानदारी का टाइम है भाई दुकानदारी के साथ नोकरी करो वैसी भी लोगों ने खबरिया चैनल देखना बंद करना शुरू कर दिया है. भाई मनोरंजन ही देखना है तो मनोरंजक चैनल क्योँ है.
    जय जय भड़ास

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  3. आरोप लगाने को बहुते कुछ है. तब मीडिया कहेगा पुलिस ने गलत किया. फिर बताएगा हमें तो नार्को की जानकारी फलां चिकित्सक ने बताई . तब तक यार कोई नया मामला पैदा कर लेंगे. खबर बेचनी है कि नहीं. पत्रकारिता करना है तो घर में बैठों भरत जी अखबार में जाने की जरूरत नहीं. यहां सब धंधा है जो नहीं बिका वो बाजार से बाहर शायद आप समझ रहे हैं.

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  4. वाह रे मेरे अनाम बेनाम गुमनाम भाई, अगर पेशे से पत्रकार होते तो नाम के साथ टीका टिपण्णी करते आखिर तुमने साबित किया ही कि तुम ही नही तुम्हारे जैसे बहूत सारे पत्रकार के नाम पर अपने लाला के दलाल हैं. जारी रखिये अपनी दलाली वैसी भी आपके पेशे में दलाल अधिक आते हैं. और मैं अनाम नहीं हूँ.
    जय जय भड़ास

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