6.7.08
क्या पता था कि कश्मीर की आग इंदौर तक पहुँच जाएगी!
इंदौर में इस समय दंगे भड़के हुए हैं। कल चार लोग मारे गए थे, आज भी इतने ही या इससे ज्यादा मारे जा चुके हैं। पुष्टि होनी बाकी है। कई जगह पुलिस पिटी है और कई जगह पुलिस ने गोलियाँ भी चलाई हैं जिनमें कई लोग घायल हुए हैं। क्योंकि मैं कोई अखबार की खबर नहीं लिख रहा हूँ इसलिए साफ तौर से लिखना चाहता हूँ कि दंगे हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच भड़के हुए हैं। गुरुवार यानी ३ जुलाई की रोज भारत बंद के दौरान यह माहौल शुरू हुआ था जो आज भी जारी है। कल का बंद अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि को लेकर था जिसने वहाँ से पूरे दो हजार किमी दूर जाकर आग पकड़ी। हमें नहीं पता था कि कश्मीर की आग इंदौर तक पहुँचेगी....दोस्तों, मैं जिन ४-५ शहरों में रहा हूँ उसमें से यह पहला है जहाँ इस प्रकार से दो धर्मों के लोग आपस में लड़ रहे हैं। लड़ाई इस तरह से हो रही है कि लग रहा है कि पूरी तैयारी पहले ही कर ली गई थी। कई ट्रक पत्थर फैंके जा चुके हैं और कुछ मौहल्लों से तीन ट्रक पत्थर जब्त भी हुए हैं। पुलिस ने बल प्रयोग किया है, पूरे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है। एक दर्जन लोग मारे जा चुके हैं और कई दर्जन घायल हुए हैं। बंद तो कल पूरे भारत में था लेकिन इस शांतिप्रिय शहर में ही यह आग क्यों लगी ये फिलहाल मेरी समझ में नहीं आया है। मैं इस शहर का नहीं हूँ फिर भी मुझे इस घटना पर दुख है, तो जो लोग यहाँ के रहने वाले हैं उन्हें कितना दुख हो रहा होगा, ये मैं सोच सकता हूँ। हालांकि मैं इस शहर में पहले भी पाँच साल (१९९५-२०००) तक रह चुका हूँ लेकिन तब ऐसी कोई भी घटना का मैं गवाह नहीं बना था। तो अब मैं आप लोगों के साथ ही इस घटना की विवेचना करने की कोशिश करूँगा। दोस्तों, मप्र में भाजपा का शासन है और मैंने कई लोगों से यह कहते सुना है कि यह दंगे भाजपा करवा रही है, सत्ता हासिल करने के लिए। उसने ऐसा गुजरात में भी किया था वगैरह-वगैरह। लेकिन इस बार तो गुजरात में कुछ नहीं हुआ, वहाँ के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कर दिया था कि वो इस बंद का समर्थन नहीं करेंगे। खैर मैं कोई नरेन्द्र मोदी की शह नहीं ले रहा हूँ लेकिन बताना चाह रहा हूँ कि गड़बड़ कहाँ है। बात कांग्रेस से शुरू करते हैं। कांग्रेस जानती है कि इस देश का कोई भी मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देता। लेकिन बीच-बीच में भाजपा की ओर से मुस्लिमों को अपने फेवर में करने की नाकाम कोशिशें सामने आती रहती हैं। मसलन वो आडवाणी और जिन्ना वाला किस्सा। तो दोस्तों कांग्रेस को लगता है कि कहीं मुसलमान उसकी गोदी से उतरकर भाजपा की झोली में ना चले जाएँ तो इसलिए वो कोई ना कोई तुर्रा फैंकती रहती है। कुछ माह पहले हुआ रामसेतु मुद्दा भी वैसा ही तुर्रा था। उस मामले में कांग्रेस की दोगलाई देखिए कि उसने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा तक पेश करवा दिया था कि राम का कोई अस्तित्व ही नहीं मिलता और वो इतिहास में कहीं दर्ज नहीं हैं। धन्य है कांग्रेस......। तो साहब देश भर में हंगामा हुआ, कांग्रेस की नाक नीची हुई। लेकिन कांग्रेस नहीं सुधरी। कांग्रेस जानती है कि उसका हिन्दू मतदाता तो कभी महंगाई, कभी पेट्रोल, कभी प्याज तो कभी किसी और बात से बहकाया जा सकता है लेकिन मुसलमान मददाताओं को धर्म की बात करके ही रिझाया जा सकता है इसलिए वह अपने पत्ते चलती रहती है। वह अंग्रेजों की तर्ज पर ही देश पर शासन कर रही है। यानी फूट डालो और राज करो की नीति पर। अब अमरनाथ मामले को ही ले लीजिए। ढाई हजार किमी दूर का मामला है। जम्मू-कश्मीर की कांग्रेस सरकार ने आगे बढ़कर २१ करोड़ रुपए में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन दी थी। वहाँ प्रदर्शन हुए, पीडीपी ने समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस झुक गई। अब कांग्रेस को दो बातें सोचनी चाहिए थी जमीन वापस लेने से पहले। कि वो जानती है कि यह मामला धार्मिक था, उसे वहाँ के प्रदर्शनकारियों पर ध्यान नहीं देना था। अब उस २१ करोड़ की जमीन की कीमत मात्र कुछ ही दिनों में हजारों करोड़ पहुँच गई है। क्या आपको पता है? नहीं समझ आया तो मैं समझता हूँ..।इंदौर दो दिन से बंद है। सिर्फ इसी शहर का करोड़ों रुपयों का कारोबार प्रभावित हुआ है। लाखों रुपए की संपत्ति को नुकसान पहुँचा। ३ जुलाई को देश बंद था, हजारों करोड़ रुपए का देश को नुकसान हुआ। मात्र उस २१ करोड़ रुपए की जमीन के कारण। इंदौर की स्थिति इतनी खराब है कि यहाँ पूरे शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है। यह आगे भी कुछ दिन चल सकता है। ऐसे में यहाँ का कारोबार तो ठप होगा ही आस-पास के क्षेत्रों में लोगों का जीना भी दूभर हो जाएगा। इंदौर मालवा और निमाड़ के लोगों को भारी मात्रा में साधन और व्यवसाय उपलब्ध करवाता है। वो सब इलाके भी इस बंद की चपेट में आ गए हैं। आप सोचिए कितनी महंगी पड़ी हमें वो अमरनाथ वाली जमीन.......।।।।अब सवाल यह है कि कांग्रेस अमूमन ऐसे मामले बीच-बीच में क्यों ले आती है। क्या उसकी मंशा भाजपा को मुद्दा देने की होती है ताकि कुछ सांप्रदायिक हो और भाजपा को कटघरे में खड़ा किया जा सके? या फिर उसे देश के विकास की कोई परवाह नहीं है वह सिर्फ सत्ता में रहना चाहती है जैसा कि अभी तक रहती आई है। कांग्रेस ने जिस पीडीपी का दबाव स्वीकार किया है वह वो ही पार्टी है जिसकी रूबीना सईद को छुड़ाने के लिए १३ दुर्दांत आतंकवादियों को छोड़ दिया गया था। उस पीडीपी से भी क्या दबना जो साफतौर से देशद्रोही है और हमेशा भारत से अलग होने की ही माँग करती रहती है, बस उसके शब्दों में स्वतंत्रता की जगह स्वायत्ता होती है। इंदौर में १९८९ से हालात खराब हैं। तब यहाँ कई सप्ताह का कर्फ्यू लगा था और भयानक दंगे हुए थे। वो दंगे भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच हुए थे। उसके बाद १९९१ फिर १९९२ में भी दंगे हुए थे। लेकिन पिछले लगभग १५ साल से कुछ-कुछ शांति वाली स्थिति ही थी। इस विवाद ने पुराने जख्मों को फिर हरा कर दिया है। कांग्रेस और भाजपा के चक्कर में यहाँ की जनता १५ साल पीछे चली गई है। पिछले सवा साल में इस शहर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। अगर यही स्थिति रही तो इस शहर का मिनी मुंबई बने रहने का सपना बिखर जाएगा। व्यापार व्यवसाय ठप हो जाएगा। बाहर से यहाँ आकर बसने वाले व्यापारी लोग इस शहर से जाने की सोचने लगेंगे। कुछ छोटे मामलों की इस शहर को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। शब-ए-मालवा के साथ ऐसा होते देखना कम से कम मैं तो नहीं चाहता हूँ। इन नेताओं के चक्कर में हमें इस जिंदादिल शहर को मरने नहीं देना है। आपका ही सचिन....।
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