अगस्त क्रांति और बिहार
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले,
वतन पर मरने वालों का कोई नाम व निशां न होगा
आज से ठीक 66 साल पहले, 9 अगस्त 1942 ‘करो या मरो’ का पहला दिन .... और बिहार कई दिन पहले ही से नये तेवर में बौराया था। 8 अगस्त की रात ही पटना में सैंकड़ों गिरफ्तार.... और सुबह में देश को ब्रिटिश साम्राज्य की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए बुलंदियों की हद तोड़ती आतुरता....... और यही जुनून अड़तालिस घंटे बाद फिरंगी राज के प्रमुख प्रतीक (पुराना सचिवालय ) पर तिरंगा लहरा देता है। सात नौजवान छात्र शहीद और फिर पूरे देश में आंदोलन की आंग.... और इसी आग ने ब्रिटिश राज्य की नीवों को हिला दी एवं आज़ादी हासिल करने के लक्ष्य में निर्णायक भूमिका अदा की।
लेकिन आज हम शहीदों भुला चुके हैं। शहीदों को भुलाने की इससे बड़ी व्यवस्थागत विडंबना और क्या होगी कि आज तक उनकी समेकित सूचि भी नहीं।
न दबाया जरे चमन इन्हें, न दिया किसी ने कफन इन्हें
किया किसने यार दफन इन्हें, बेठिकाना इनका मज़ार है।
तो आइए उन शहीदों को श्रधांजलि अर्पित करे, जिनके वीरोचित कार्यकलापों को नई पीढ़ियां जानती तक नहीं। हिंदी के महान साहित्यकार व स्वतंत्रता सेनानी रमेश चंद्र झा ने क्या खूब कहा है।
न मिल पाई जिसे स्याही अभी तक,
वहीं इतिहास का खोया रतन है।
कि जिस नाम को न जाना अब तक,
उसी गुमननाम को मेरा नमन है।
वास्तव में आज संक्रमण का दौर है। काल्पनिक नायकत्व तक से ऊबी जिंदगिया, शक्तिमान, हैरीपोटर, पोकेमोन, सुपरमैन, स्पाइडरमैन, कृष और खली की ड्रामाबाज़ी में मस्त है। हद तो यह है कि शहीदों के गांव वालों को ही अपने गांव-कस्बों के शहीदों के नाम याद नहीं, जबकि प्रदेश का ज़र्रा-ज़र्रा शहादत की दास्तान अपने दिल में समो कर रखा है।
जब अंग्रेज़ी फौजों ने राक्षसी तेवर अपनाने प्रारंभ किए। बलात्कार, बच्चों को आग में झोंकना, गांवों को फूंकना, खादी भंडारों पर कब्ज़ा, उसकी बर्बादी, कैदियों को पेशाब पिलाना...., आखिर लोग कहां तक फिरंगियों के जुल्म को सहते। यहीं से प्रारंभ हुआ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ जिसे हम अगस्त क्रांति के नाम से जानते है। अगस्त क्रांति के दौरान खास तौर पर डाकखाना व रेल निशानों पर रहें। सरकारी दफ्तर-थाने से अंग्रेज या उनके चमचे मार भगाए गए। मुज़फ्फरपुर के लोगों ने तो गोंलियों का मुकाबला लकड़ी की ढाल से किया। आरा, हाजीपुर, सीतामढ़ी व संथालपरगाना की जेल तोड़ कैदी भग चले। लोगों से डर कर मुंगेर , पुर्णिया, शाहाबाद, आरा, दरभंगा, चंपारण, भागलपुर....जिलों के 80 फीसद ग्रामीण थाने ज़िला मुख्यालयों मे आ गए। कचहरियों पर हमला, टाटा नगर में मजदूरों की हड़ताल... फिरंगियों के होश उड़ाने लगे। लेकिन लोग अब भी कहां मानने वाले थे। 11 अगस्त की सचिवालय गोलीकांड ने खास कर पटना जिले में लोगों के गुस्से को चरम पर पहुंचा दिया। दो दिनों बाद आई टामी ब्रिगेड जन-विद्रोह दबाने लगा। फुलवारीशरीफ में 17, विक्रमगंज में 2 व बाढ़-नौबतपुर में एक-एक व्यक्ति शहीद हुए। फतुहा में दो कनाडियन अफसर मार डाले गए।
मुंगेर जि़ले में हवाई जहाज़ से चली गोलियों ने 40 को शहीद किया। महेशखूंट, मदारपुर, सूर्यगढ़, तेघड़ा, बेगूसराय, बरिआरपुर, मानसी, खगड़िया, गोगरी... फायरिंग में 41 लोग मारे गए। मुंगेर ज़िले में 17 थानों पर हमला, सरकारी कार्यालयों पर जनता का कब्ज़ा, स्वशासन इकाईयों का गठन, तारापुर में जनता दारोगा-जमादार की बहाली... उधर बेतिया (प॰ चम्पारण ), मेंहसी, फुवांटा, पंच कोखरिया में अंग्रेजों की गोलियां तड़तड़ाती रहीं। रामावतार साह को स्टेशन बुलाकर गोली मार दी गई। शाहाबाद के 21 स्थानों पर चली गोली में दो दर्जन शहीद हुए।डुमरांव थाने पर तिरंगा फहराने की कोशिश में बारी-बारी से तीन युवक (कपिलमुनि, रामदास लुहार, गोपाल राम ) मारे गए। सासाराम में मशीनगन से जूलूस पर गोलियां चलीं। गया ज़िले में गोली से तीन व थाना कांग्रेस कमेटी के मंत्री श्याम बिहारी लाल भाला से मारे गए। अरवल के शिक्षक दुसाध्य सिंह की हत्या कर दी गई। हज़ारीबाग़ में आंदोलनकारियों को चैराहों पर नंगा कर हंटर से पीटा गया। इसी बीच हजारीबाग़ सेंट्रल जेल से जय प्रकाश नारायण-सूर्यानारायण सिंह व साथियों की फरारी ने लगी आग को और भड़का दिया। परशुराम व सियाराम दल (भागलपुर ) ने अंग्रेज़ों को तबाह कर दिया। नतीजा भागलपुर जेल में फायरिंग और सवा सौ लोगों की मौत ..... कैदियों ने एक अफसर को मार डाला। पुपरी (मुज़फ्फरपुर ) का दारोगा अर्जुन सिंह ने पांच लोगों की हत्या करा दी। मीना पुर थाने पर एक व्यक्ति की मौत से गुस्साये लोगों ने थानेदार को मार डाला। सीतामढ़ी व हाजीपुर के इलाके में भारी मारकाट हुई। कई को फांसी व आजीवन कारावास की सजा हुई। कटिहार थाने पर हमला करने जाते आठ लोग मारे गए। इसमें तेरह वर्षीय ध्रुव भी था। यहां 13 थानों पर हुए हमलों में एक थानेदार व तीन सिपाही मारे गए। बदले में पुलिस ने 11 स्थानों पर गोलियां चलाई और 35 लोगों को मार डाला।
सिवान में एक सभा पर हुए पुलिसिया हमले में तीन लोग मारे गए। भड़के लोगों ने छपरा स्टेशन पर आग लगा दी। मढौरा में सभा पर हमला करने आए पांच अंगे्रजों को लोगों ने मार डाला, दो आंदोलन कारी भी शहीद हो गए। सिवान थाना पर तिरंगा फहराने की कोशिश में बाबू फुलैना प्रसाद समेत चार लोग मारे गए। श्री प्रसाद की धर्मपत्नी श्रीमति तारावती तो पति के गोली लगने के बाद स्वंय ही तिरंगा लेकर आगे बढ़ गई। छपरा से सिवान जाने के रास्ते अंगे्रज़ों ने खेतों में काम कर रहे दो लड़कों की हत्या कर दी। मलखाचक में रामगोविंद सिंह का घर डायनामाइट से उड़ा दिया गया। जानकी मिश्र को बूट की ठोकरों से मार डाला गया। लोगों ने एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी।
हर तरफ फिरंगियों की फायरिंग...... भारी उत्पाद..... सैंकड़ों भारतीय शहीद....... फिर आंदोलनकारियों के कदम फिरंगी डिगाने में नाकाम रहें। इस तरह अंतहीन सी है दास्तान सिर्फ अनुभवजन्य! खैर सच्चिदानंद की इन पंक्तियों से हम उन शहीदों को करते हैं सलामः-
उनको स्वराज्य की, हो रंगरलियां मुबारक,
हम शोषितों को अपनी कुर्बानियां मुबारक
ओ नौ अगस्त वाले, युग-युग अमर शहीदों,
तुम को फिरंगियों की हो फांसियां मुबारक।
अफरोज़ आलम ‘साहिल’ एच ।77/14, चतुर्थ तल, शहाब मस्जिद रोडबटला हाउस, ओखला, नई दिल्ली-२५
मोबाईलः 9891322178
bihar ke in chizon ko saamne lane zarurat main kaee saalon se kar raha tha, par naakaam raha.. par aapne yah kam anjam de kar mera dil khush kar diya......
ReplyDeletebihar ke in chizon ko saamne lane zarurat main kaee saalon se kar raha tha, par naakaam raha.. par aapne yah kam anjam de kar mera dil khush kar diya......
ReplyDeleteभाई,काश हम सब इस बात को समझ पाते कि क्या वजह थी जिस कारण हमारे पूर्वजों ने इतने बलिदान देने में कोई हिचकिचाहड नही दिखाई तो फिर आज जब काले अंग्रेजो ने देश के संविधान की धज्जियां उड़ा रखी हैं हम हाथों में पत्थर क्यों नहीं उठाते???? अगर कोई संगठित राजनैतिक दल के लोग पत्थर उठा लें तो हम उसका विरोध भी नही कर पाते क्यों?? क्यों??? क्यों???????
ReplyDeleteजागो रे जागो रे जागो रे.....
भाई,
ReplyDeleteआपके कलम को मेरा सलाम, बढ़िया और शानदार तरीके से अतीत को याद दिलाया, मगर हमारे इस सुनहरे अतीत पर गर्द सफेदी डालने वालों के लिए पुन:सच इसी ही आन्दोलन की जरुरत आन पड़ी है.
जय जय भड़ास