29.8.08

बूझो मीडिया लाल

  • अमिताभ बुधोलिया 'फरोग'

भोपाली दोस्तों,
ये वो पहेलियां हैं, जिनमें निंदा रस भी है और विष सरीखे तीर भी। यह आपका नजरिया है कि आप इन्हें किस नजर से देखते हैं। बेहतर होगा, मन और मस्तिष्क दोनों स्वच्छ रखें।

1

आदमी में औरत हैं, नहीं पचती कोई बात।

मुंह पर बोलें मीठा-मीठा, पीछे करते घात।।

धोबी के कुत्ते हुए, घर मिला न घाट।

राज गया, सब ठाठ गया, लगी पड़ी है बाट।।

बूझो इनकी जात?

2

फीचर देखें, खबरें देखें फिर भी खिंचती खाल।

मित्र कराते हम्माली, फिर नहीं मलाल।।

'गुप्त' 'काल' में खोई जवानी' निकला सारा तेल।

दिन जागरण, रात जागरण दिनभर पेलमपेल॥
दाऊ, बड़ा गजब है खेल।

3

नस-नस में गद्दारी जिसके , जन्मजात बेईमान।

थूक रही है दुनिया सारी, शान बची न मान।

जिस मूरत को पूजें , करें उसी को खंडित।

कब सुधरोगे हे! मूरख पंडित?

7 comments:

  1. bhai bhopali ji kya gazab ka masala lagaya hai aapne.

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  2. भाई,पेट्रोल है..पेट्रोल बहुत आग है इन पहेलियों में...

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  3. bahut sundar budhauliya ji... khoob kataksh...

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  4. ज़बरदस्त
    फीचर देखें, खबरें देखें फिर भी खिंचती खाल।
    मित्र कराते हम्माली, फिर नहीं मलाल।।
    सशक्त अभिव्यक्ति के लिए आभार

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  5. dhnyabad......

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  6. aap ne to paheliyo me pole hi khol di. bahut sundar

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