10.8.08

मृत्यु है ....तो ही तो जीवन है !

करुणाकर की मौत पर कुछ लिखना चाहता था ..........
लेकिन अंत में यह रचना सटीक लगी ....................



निर्मम है
काल चक्र
अतिशय निर्मम !
जिसके नीचे
जड़ जंगम
क्रमशः पिस्ता और बदलता
हर क्षण , हर पल !
थर-थर कांपता भूमंडल !

अदृश्य
निः शब्द किए
अविरत घूम रहा
यह काल चक्र
निर्विघ्न ....... निर्विकार !

इसके सम्मुख
स्थिरता का कोई
अस्तित्व नहीं,
इसकी गति से
सतत नियंत्रित
जीवन और मरण ,
धरती और गगन !



डॉ महेंद्र भटनागर की रचना "मृत्यु बोध और जीवन बोध" से साभार

1 comment:

  1. निः शब्द किए
    अविरत घूम रहा
    यह काल चक्र
    निर्विघ्न ....... निर्विकार !


    जय जय करुनाकर,
    जय जय करुनाकर

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