लेकिन अंत में यह रचना सटीक लगी ....................
निर्मम है
काल चक्र
अतिशय निर्मम !
जिसके नीचे
जड़ जंगम
क्रमशः पिस्ता और बदलता
हर क्षण , हर पल !
थर-थर कांपता भूमंडल !
अदृश्य
निः शब्द किए
अविरत घूम रहा
यह काल चक्र
निर्विघ्न ....... निर्विकार !
इसके सम्मुख
स्थिरता का कोई
अस्तित्व नहीं,
इसकी गति से
सतत नियंत्रित
जीवन और मरण ,
धरती और गगन !
डॉ महेंद्र भटनागर की रचना "मृत्यु बोध और जीवन बोध" से साभार
- प्राइमरी के मास्टर की ओर से करुणाकर को श्रधांजली
निः शब्द किए
ReplyDeleteअविरत घूम रहा
यह काल चक्र
निर्विघ्न ....... निर्विकार !
जय जय करुनाकर,
जय जय करुनाकर