डाक्टर रूपेश ! शेम-शेम... शर्म की बात है आपके लिये ........ हर पोस्ट पर टिप्पणी लिखने वाले करुणाकर की मौत की बात पर चुप्पी क्यों साधे हो????? आज मुझे ये सुनने को मिल रहा है तो इसमें क्या ऐसा है जो मुझे दुःख होना चाहिये क्योंकि मैं तो जादूगर हूं साथ ही धरती का भगवान कहलाता हूं यानि कि चिकित्सक....... मैं क्यों असाध्य कहकर मौत का तिल-तिल इंतजार करते लोगों का उपचार अपने जिम्मे पर ले लेता हूं ???? मैंने अपने अध्ययनकाल में न जाने कितनी बार देखा कि पच्चीसों डाक्टरों की टीम मरीज को एण्टी-स्पाज़्मोडिक दवाएं दे रही ऐ फिर भी पेट दर्द है कि रुक नहीं रहा या संसार का सबसे अच्छा हार्ट-स्टिम्युलेंट देने के बावजूद पूरी टीम के सामने कार्डियोग्राम फ़्लैट होता जा रहा है और बस अगले पल एक सीधी लकीर..... खत्म ... जीवन समाप्त.... क्यों..क्यों...?????? बस इसलिये कि सुनिश्चित हार की घोषणा के बाद भी मैं लड़ना छोड़ कर हथियार डाल कर बैठ नहीं जाता.......। मैंने करुणाकर के परिवार के लिये सांत्वना के दो शब्द तक नहीं बोले या लिखे जबकि इस मुद्दे (मुद्दा इसलिये कह रहा हूं क्योंकि इस विषय के चलते मुझे ख्याति मिलने वाली थी जिसे कि मैं भविष्य में शायद कैश कराता ऐसा लोगों का विचार है ) पर मुझे सबसे ज्यादा चिल्ल-पौं करना चाहिये था आखिर हार मेरी हुई... चिकित्सा शास्त्र की हुई... आयुर्वेद की हुई....। कोई प्रलाप न करूंगा और न ही इस बात का अफसोस करूंगा कि मैं इस मिशन में नाकामयाब हुआ.......। मैं हर बार जीतता हूं जीवन की जंग क्योंकि डूबते जहाज की कप्तानी स्वीकारने का साहस है ... भय नहीं है इस बात का कि लोग निंदा करेंगे .... इस भय से मरणासन्न रोगी को भगा नहीं देता और अंतिम सांस तक लड़ता हूं। चिकित्सा करने पर अगर चमत्कार नहीं होता तो मैं निस्संदेह अपराधी ही तो हूं मुझे मार डालना ही सही न होगा क्या???? एक दिन मैं भी मरूंगा और किसी चिकित्सक को मेरे परिवार के लोग कोसते हुए आगे बढ़ जाएंगे जीवन पथ पर .....।
बस इतना ही..............
डा. रुपेश श्रीवास्तव जी , अभी अभी नारद पर आपकी पोस्ट देखी !
ReplyDeleteह्रदय विदारक समाचार है ! इश्वर से करुनाकर की आत्मा की शांती
की प्रार्थना करता हुवा ईश्वर से उस शौक संतप्त परिवार को ढाढश
बंधाने की प्रार्थना है ! डा. श्रीवास्तव आपका और सभी का दुखी
होना स्वाभाविक है ! आपने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया है ! उस
बच्चे की जिन्दगी शायद इतनी ही लिखी थी ! मैं जानता हूँ की
चिकित्सक भी मरीज से इतना एकाकार हो चुका होता है की वह
भी मरीज को अपना ही समझने लगता है ! आप भी धैर्य धारण
करे ! आपकी पीडा भी असहनीय है ! आप इस बात की परवाह
ना करे की लोगों को आपकी नियत पर शक था की आपको
भविष्य में कुछ फायदा होने वाला था ! डाक्टर आपने अपना
सर्वोत्तम किया है ! इस दुनिया में आलोचक और व्यर्थ के आलोचक
हमेशा रहेंगे ! उन पर समझ दार ध्यान नही दिया करते !
आप धैर्य धारण करे !
ईश्वर से करुनाकर की आत्मा की शांती की कामना एवं
परिवार को इस दुःख को सहन करने की क्षमता की प्रार्थना के साथ
डाक्टर साहब, अब और मत रुलाइए। आज का पूरा दिन अवसाद और दुख में बीता है। अपने साथी को न बचा पाने का तकलीफ मुझे भी है। आप से जो भी यह कह रहा है कि आपने कुछ लिखा नहीं और कमेंट नहीं किया, वो जरूर कोई अपना ही होगा। आपसे लगाव के नाते कह रहा होगा। एक डाक्टर बेहतर से बेहतर इलाज दे सकता है, जीवन देने की कोशिश कर सकता है पर अंतिम नतीजा तो देना न आपके हाथ में है और न मेरे। अमित द्विवेदी करुणाकर के घर के लिए आज दोपहर बाद रवाना हो चुके हैं। वो हम सब लोगों की तरफ से करुणाकर के परिजनों के बीच पहुंच रहें हैं। मेरी भी इच्छा थी कि जाऊं पर दुनियादारी के बोझ ने मेरे पैर बांध लिए हैं।
ReplyDeleteरुपेश जी, आपसे अनुरोध है कि जिस तरह हर मौकों पर आपने हम सबको दिशा दिखाई है, उसी तरह दुख के इस मौके पर भी हम सबको जीने का दिलासा और भरोसा दें। करुणाकर नहीं रहे लेकिन हम सब एक कोशिश करने की सोच सकते हैं ताकि भविष्य में ऐसे जितने भी करुणाकर मिलें, उनका भविष्य हम निखार सकें। हर दुख का मौका एक सबक और चुनौती लेकर आता है। मुख्य चीज है इसे पहचानने और इसके आधार पर आगे रहा बनाने की।
दुख की इस घड़ी में मैं आपसे सब्र और संतुलन की अपेक्षा रखता हूं। उम्मीद है हम आप सब करुणाकर की यादों को समेटे आगे बढ़ने, चलने, जीने की कोशिश करेंगे।
यशवंत
dada main haar gaya. hum haar gaye...hum sab haar gaye...haar, haar aur sirf haar aayi hamare khaate mein.....
ReplyDeleteरुपेश भाई,
ReplyDeleteजीवन के सच को जो जानते हैं वो ही जंग के मैदान में आते हैं. करुणा भले ही आज हमारे बीच नही है मगर उसने इस मृत समाज के गलीज समुदाय "भड़ास" को जीवन का जो रास्ता दिखा गया वो आने वाले दिनों में आपको ही ढूंढेगा. करुनाकर सिर्फ़ करुनाकर नही रहा बल्की इस हिन्दुस्तान में हजारो, लाखो करुणा की आवाज को आगाज़ दे गया, तो क्या हम एक करुणा के जाने से दुखी हो जाएँ की उसकी आत्मा को भी दुःख होता रहे.... नही बल्की हमारी जिम्मेदारी और जवाबदेही और बढ़ सी गयी है, क्यूंकि ढेरक करुणा को आपकी जरुरत है और ये ही आपकी, हमारी, भड़ास की करुनाकर को सच्ची श्रधांजलि होगी.
जय जय करुनाकर
जय भड़ास