28.10.08

दीवाली पर कोलकाता पुलिस की ज्यादती से परेशान मारवाडी समाज

प्रकाश चंडालिया
तीस वर्षों से पश्चिम बंगाल में राज करने वाले वामपन्थिओं ने अभी तक प्रवासी समाज के साथ ठीक से व्यवहार करना नही सीखा है. राजनैतिक फायदे के लिए अल्पसंख्यकों को दामाद बनाये रखेंगे, लेकिन सभ्य और शालीन प्रवासी समाज के लोगों को बेवजह तंग करेंगे. दीपावली पर प्रदुषण फैलाने के आरोप में कोलकाता पुलिस अनावश्यक रूप से मारवाडी समाज के लोगों को तंग कर रही है, उन्हें बेवाजग गिरफ्तार कर रही है. ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं. पुलिस की नजर में मारवाडी मछली-मुर्गी की तरह होते हैं. इन्हे जब चाहो-जैसे चाहो हलाल किया जा सकता है. वैसे भी दिवाली के समय गिरफ्तार होने वाले गाहे-बगाहे छूटने के लिए जेब हलकी करेगा ही. कोलकाता के मारवाडी बहुल इलाकों मसलन, बडाबाजार, पोस्ता, गिरीश पार्क, लेक टाऊन, हांवड़ा, बांगुर, भोवानिपुर, पार्क स्ट्रीट आदि इलाकों में दिवाली के समय पुलिस की चांदी रहती है. कोई शिकायत करे तौ भी ठीक, न करे तौ भी,आरोप है कि पुलिस अपना धंधा करने से नही चुकती. सही तरीके से कोई समझाए तो भी पुलिस वाले नही मानेंगे, पर यदि किसी दबंग माकपा नेता से फ़ोन करवा दिया जाए तो आनन्-फानन में उसका आदेश मान लिया जाता है.बंगाल में लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि यहाँ साम्प्रदायिक सद्भाव है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि चंद बदनाम दो नम्बरी, टैक्स डकारने वाले, मारवाडी व्यापारियों के गुनाह कि कीमत पुरे समाज को चुकानी पड़ रही है . होली के त्यौहार पर भी पुलिस का तांडव चलता है. मान भी लिया जाय कि यहाँ राज ठाकरे का राज नही चलता, फ़िर भी यह सब जो हो रहा है, वह किस राज का प्रतीक है? बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार को प्रवासी समाज के साथ वाही व्यवहार करना चाहिए, जो वह अपने लिए उनसे चाहते है.

1 comment:

  1. खुला फ़र्रुखाबादी है राजनीति का खेल.
    वोट जहाँ से भी मिले, वहीं करेंगे मेल.
    वहीं करेंगे मेल, भले हैं बंगला-देशी.
    आतंकी हैं, लेकिन वोट तो देते बेसी.
    कह साधक कवि,वाम और मुस्लिम की शादी.
    वाम -नीति का खेल है खुला फ़्र्रुखाबादी.

    पुलिस-प्रशासन-फ़ौज भी देंगे उनका साथ.
    यु.एन.ओ.और संविधान, सबकी करता बात.
    सबकी कहता बात,रावणी कुनबा भारी.
    हिन्दू दबकर रहे, सभी की है तैय्यारी.
    पर साधक रावण से बढकर नही है शासन.
    उसे हर बरस जलता देखे पुलिस-प्रशासन.

    दुश्मन को दुश्मन कहें, कहें दोस्त को मित्र.
    तभी स्पष्ट हो पायेगा, धर्म-युद्ध का चित्र
    धर्म-युद्ध का चित्र,देख लो महाभारत है.
    क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ, भारत का स्वर है.
    यह साधक कवि साफ़ देखता भारत का मन.
    धर्म-विरोधी को कहते आये हम दुश्मन.

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