12.10.08

इक नौकरी है साली....




कौन हूं मैं, क्या है मेरे मायने...
लाखों की भीड़ में लावारिस पड़ा सामान सा लगता हूं
शक़ होता है कभी कि जानवर हूं या इंसान हूं...
इक नौकरी है साली, घोड़े की तरह
नाक में नाल डली है,
उसे कोई दो हाथ खींचते दिखाई देते हैं
आज तक चेहरा नहीं दिखा उस माई-बाप का॥

डर लगता है जिस दिन थककर बैठ गया
तो रेस से निकाल दिया जाउंगा
डर लगता है उस दिन से
जब हारा हुआ कहलाउंगा...
इसलिए दौड़ता रहना चाहता हूं इस अंधी दौड़ में

थक गया हूं फिर भी दौड़ रहा हूं...

-पुनीत भारद्वाज

2 comments:

  1. badhas acchi akali
    rachana jordar he
    regards

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  2. बहुत खूब,
    और सच्चाई से रु बा रु कराता भी,
    आपको बधाई

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