सहशिक्षा की नीति उचित है लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है शिक्षा ! यूपी बोर्ड की सहशिक्षा के पक्ष में सिफारिश के बाद शासन का असमंजस में पड़ना स्वाभाविक है ! हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं , अब हमें कदम आगे बढ़ाना होगा ! लड़कों और लड़कियों को अलग-अलग नहीं बल्कि साथ पढाना होगा, ताकि वे ज्यादा खुले माहौल में जीना सीखें ! उन्हें एक-दूसरे की समझ हो ! वो एक ही दुनिया के हिस्सा हैं इस बात का इल्म हो !
इन बातों के लिहाज़ से बोर्ड की सिफारिश अपनी जगह सही है लेकिन साथ ही कुछ और चीजों पर गौर करना भी उतना ही जरूरी है ! राज्य के सामाजिक ढाँचे को समझना होगा ! जहाँ लड़कियों के स्कूल में लड़कों का प्रवेश वर्जित हो , अगर वहां लड़के - लड़कियों को साथ पढाया गया तो कहीं लड़कियों की पढाई में ही बाधा न खड़ी हो जाए ! कहीं उनके स्कूल जाने पर ही रोक न लग जाए ! कस्बों और गाँवों का माहौल अभी भी लड़कियों की पढाई के पक्ष में ज्यादा नहीं है ! जब उन्हें पता चलेगा कि उनके घर की लड़की अब लड़कों के साथ पढाई करेगी तो बहुत मुमकिन है कि वे उनका स्कूल ही छुड़वा दें !
लड़कियों के लिए खुली हवा जितनी जरूरी है उससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि वे शिक्षित और स्वावलंबी बनें ! सहशिक्षा शुरू करने से पहले उसके पक्ष में वातावरण बनाने की जरूरत है ! जरूरी है कि समाज उसे ज्यादा सकारात्मक नजरिये से देखे ! जब तक इस बात की संशय रहे कि सहशिक्षा लागू करने से लड़कियों के शिक्षित होने पर ही बाधा खड़ी हो सकती है तब तक सिर्फ़ शिक्षा पर ही ध्यान दिया जाए तो बेहतर होगा !
मैं तो कहता हूँ की यौन सिक्षा की जरुरत ही कहाँ है क्या आपको हमको किसी ने दी थी?फ़िर भी हम इतने सालों से सयामीत और मर्यादित है ...ये सब पाश्चात्य देशों के चोंच्लें है...बचों को नैतिक सिक्षा और मर्यादित आचरण सिखाएं...काफ़ी है क्यूंकि संस्कार तो घर से मिलते ही है......
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