नेता हल्के, जनता जॉनी अंग-प्रत्यंगा भारी है।
खादी च्यों रंडवाई भोगें, कुर्सी अभी कंवारी हैं।
जनता इनको देखके बोली, दादा फिर से आ गए आप...
मुझे माफ कर, मुझे माफ कर, मुझे माफ कर मेरे बाप...
बिजली, शेयर, चीनी, राशन, दूध, दही और दाल मखानी
भिंडी, तौरी, प्याज टमाटर, आटा, सरिया, सादा पानी
गैस, सिलेंडर, झोंपड़, डीजल, सीमेंट, सिगरेट, चूहेदानी
काजू, किशमिश, पत्ती, कॉफी, सब भावों में लग गई आग...
मुझे माफ कर, मुझे माफ कर, मुझे माफ कर मेरे बाप...
कहीं कबाड़ी, कहीं जुगाड़ी, कहीं पे खेल खिलाड़ी है
कहीं अगाड़ी, कहीं पिछाड़ी, लल्लू कहीं अनाड़ी है
कहीं सुरारी, कहीं जुआरी, मोहन कहीं मुरारी है
राजकुमारी, कहीं पे रानी, कहीं हर-हर गंग भिखारी है
देश का बेड़ा, जय-जय खेड़ा, सब मिट्टी में, सब कुछ खाक...
मुझे माफ कर, मुझे माफ कर, मुझे माफ कर मेरे बाप...
अपने कम्प्यूटर पर बाहर के एडिशनों से आई हुई फोटो देख रहा था, तब कोटा से आई एक फोटो देखकर दीमाग में ख्याल आया- मुझे माफ कर, मुझे माफ कर, मुझे माफ कर मेरे बाप...। लिखने कुछ और बैठा था, लिख दिया कुछ ओर। फोटो कोटा के एक कांगे्रस प्रत्याशी की है, जो जनसम्पर्क कर रहे हैं। और यह बालक इनका अभिनन्दन कर रहा है। इस फोटो से कविता का कोई लेना-देना नहीं है। http://dard-a-dard.blogspot.com/
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