भाई भड़ासियों कौन कहता है कि भूतों को उल्टी-टट्टी नहीं होती है? अब मुझे ही देख लो मुझे मरे अरसा हो चुका है पर आज उल्टी हुई तो उसे भड़ास पर उगल रहा हूं। नीचे एक पोस्ट है कि साम्राज्यवाद के प्रतीक इंडिया गेट पर सलामी देना उचित है या नहीं.......आप इस पर कोई भी टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि भड़ासियों का क्या भरोसा साले अगर कुछ उल्टा-सुल्टा बोल गये और किन्ही लोगों को जम गयी तो झंडे के नीचे आने से पहले ही बिदक कर भाग जाएगा। जो कुछ तर्क-कुतर्क पेलने हों तो कल जिधर बताया गया है उधर जाना लेकिन वहां भी कुछ बोलना मत क्योंकि सारे एक ही सुर में बोलेंगे। अरे मुझ सुपर चूतियेस्ट से पूछो तो बिना दिमाग लगाए बेवकूफ़ की तरह कह दूंगा कि अरे यार जिस तरह तमाम शहरों, रेलवे स्टेशनों के नाम बदले हैं वैसे ही बस उस समय की सरकार के कर्मचारियों से अगर अब आपको खुन्नस है और वे आपको गद्दार, साम्राज्यवाद के रक्षक आदि-आदि-इत्यादि महसूस होने लगे हैं तो उनके नाम हटा कर अपने पसंदीदा शहीदों के नाम लिखवा लो और सलामी जारी रहने दो, मचमच किस बात की है पन भिड़ू लोग! तुम सब ढक्कन हो, अरे जब तक राष्ट्र के हित में रोटी-कपड़ा-मकान जैसी टुच्ची-मुच्ची समस्याओं को नजरअंदाज करके करे जा रहे इस आंदोलन में लाठियां गोलियां चल कर कुछ लोग टपक न जाएं तब तक नाम नहीं बदले जाएंगे। इसलिये अपुन तो मर चुका है वरना जरूरच जाता पन भिड़ू लोग तुम लोग जाओ न इत्ते जरूरी मुद्दे के वास्ते जान देने कूं, देश साला सिविल वार जैसी सिचुएशन में आ गया है तो जरा मरना तो बीमा पालिसी निकाल लेना ताकि घर वाले सुख से रह सकें क्योंकि साम्राज्यवाद की रक्षा करते मरने वालों के पास तो ये आप्शन इच नईं था।
जय जय भड़ास
अपने स्वभावनुरुप उंगली की है। मजा आया। पर कमेंट इसलिए नहीं दिया गया है क्योंकि वो केवल एक निमंत्रण है जिसमें कमेंट का कोई मतलब नहीं होता। जिसे उस पर कुछ कहना है (जैसे कि आपको कहना था) तो वो अलग से पोस्ट कर सकता है।
ReplyDeleteशुक्रिया आपका
जय भड़ास
यशवंत
दादा स्वभाव नहीं मजबूरी है कि कुछ और तो कभी था ही नहीं कि जिससे कस कर बजा सकते तो उंगली से ही काम चला लेते हैं, हमने तो अपनी हीनांगता के चलते ऐसा करा लेकिन उंगली करवाने में भी मजा आया ये तो "वेरी गुड" जैसा हो गया। वैसे न्योते निमंत्रण इससे पहले भी भड़ास पर कइयों आये-गये हैं ये एक नया प्रयोग है। अब उंगली भी मत काट देना चुप्पे से......
ReplyDeleteजय जय भड़ास
हद हो गई
ReplyDeleteरुपेश भाई अब ये समाज के ठेकेदार इंडिया गेट के पीछे पड़े हैं। जादा दिन नही जब ये गेटवे ऑफ़ इंडिया , विक्टोरिया मेमोरियल के होने पर सवाल उठाएँगे। ये सब भी तो हमरी गुलामी के प्रतिक हैं । डॉ साब मैने उन्हें मुद्दा दे दिया देखिये क्या-क्या और रंग देखने को मिलता है।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteडाक्टर साहब, आपकी बकचोदी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूं। खुद कुछ न करो, दूसरा जो करे तो उसमें उंगली करो, इस फंडे पर ज्यादातर भारतीय काम करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं। दुख ये है कि ब्लाग पर उंगली करने के वास्ते आतुर दिखते हैं लेकिन उससे इतर मौन व्रत साधे हैं। यह दोहरापन है। मौन व्रत हर मंच पर होना चाहिए। पर पता नहीं इसके पीछे आपका कौन सा फंडा है। जो भी है, अच्छा है क्योंकि हम तो आपको कभी बुरा कह नहीं सकते, दिल जो दिया है आपको।
ReplyDeleteकुमार संभव जी, मुद्दे को गहराई से समझे बिना बोलना ठीक नहीं होता। जो राष्ट्रीय विमर्श हुआ उसमें यही तो मुद्दा था कि क्या इंडिया गेट को सलामी देना उचित है। अंग्रेजों के लिए लड़ने वाले उसके सिपाहियों, जिसने हम भारतीयों पर अत्याचार किए, की याद में बने इंडिया गेट पर अपने देश के नेता क्यों सलामी देते हैं। क्या अपने देश के शहीदों के लिए इंडिया गेट से भी भव्य स्मारक नहीं बनवाया जाना चाहिए।
पर आपने जो टिप्पणी बिना जाने बूझे करी है, वो भी एक प्रवृत्ति है। हर मुद्दे पर कुछ न कुछ कहने की प्रवृत्ति। इससे बचने की कोशिश करनी चाहिए।
आप लोगों ने विषय ही ग़लत चुना है.....इंडिया गेट से पहले तो और भी बहुत सी चीज़ें है जिन पर चर्चा होनी चाहिए...अँगरेज़ जाते जाते भी बहुत सा कचरा हम पर ठोप गए थे जिससे मुक्ति पाना जरूरी है जैसेरास्त्रिया गान...जन,गण,मन,देश का नाम इंडिया जिसका कोई शाब्दिक अर्थ ही नहीं है इसी प्रकार उनके बनाये हुए कायदे कानून जिन्हें हम बिना जाने बुझे फोलो.कर...रहे है...शुरुआत इनसे करो...इंडिया गेट भी अपनेआप आ जायेगा......
ReplyDelete