बहुत सुहाना है यह शाम का मंजर।
एक दिन खत्म हो जाएगा ये ज़िन्दगी का सफर।।
दिल ये चाहे यूं ही लिखता रहे हर पल।
कभी न डगमगाए, ये कलम ऐ 'हैदर'।।
लिखावट के ज़ेरो-ज़बर में वो ताकत आए।
खुदा की सारी कायनात भी लुट जाए हम पर।।
जो भी पढ़े इन्हें, पढ़ता ही रहे हर पल।
ना उसे दिन का पता रहे, ना रहे शाम की ख़बर।।
दीन-ए-इलाही भी इनमें शामिल हों और हो सच्चे मायने।
मंजिलें भी इनसे हासिल हों और हो हासिल मंजिले डगर।।
हर आंख का तारा बनूं, हर आंख का प्यारा बनूं।
ना इसे बुरी जुबां मिले, ना लगे बुरी नज़र।।
बहुत सुहाना है यह शाम का मंजर।
एक दिन खत्म हो जाएगा ये ज़िन्दगी का सफर।।
- रज़ाक हैदर
No comments:
Post a Comment