23.12.08

ईश्वर का पुत्र



ईसाई धर्म में जीससका क्या स्थान है, इससे हर कोई भलीभांति परिचित है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि जीससको केवल इसलिए सूली पर चढा दिया गया था, क्योंकि वे खुद को ईश्वर का पुत्र मानते थे।
दरअसल, रोमन साम्राज्य के अंतर्गत आता था जीससका देश जूडिया।रोमन गवर्नर पांटियसपायलट की एक पागल व निर्दोष व्यक्ति को सूली पर चढाने में कोई रुचि नहीं थी। एक ऐसा आदमी, जो दावा करता था कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं।
दरअसल, उसे अधिकतर लोग पागल ही मानते थे। लेकिन वह किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। पांटियसपायलट ने माना कि जीससनिर्दोष हैं और उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। यदि उन्हें इस विचार से आनंद मिलता है कि वह ईश्वर का एकमात्र पुत्र है, तो उन्हें ऐसा सोचने देना चाहिए।
वास्तव में, यदि आपके मन में ईष्र्या के भाव पैदा हो रहे हैं, तभी दूसरे प्रकार के विचार आ सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति सोचे कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, तो उस व्यक्ति के प्रति विरोध प्रकट करने का सवाल ही नहीं उठता है! क्योंकि किसी भी व्यक्ति के पास इस बात का कोई ठोस प्रमाण ही नहीं है कि वह ईश्वर का पुत्र है या नहीं! व्यक्ति न केवल ईश्वर का पिता हो सकता है, बल्कि वह ईश्वर का पुत्र और भाई भी हो सकता है। यह व्यक्ति मात्र की कल्पना हो सकती है। यदि आप किसी व्यक्ति से मिलते हैं और वह आपसे कहता है कि वह ईश्वर का पुत्र है, तो क्या आप यह सोचते हैं कि उस व्यक्ति को सूली पर चढा देना चाहिए?
संभव है कि आप यह सोचें कि सामने वाला व्यक्ति अपनी राह से भटक गया है। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि उसे सूली पर चढा दिया जाए। सच तो यह है कि उस व्यक्ति को आनंद मनाने का पूरा अधिकार है। अब यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो आपको उस व्यक्ति का उत्साह और बढाना चाहिए, क्योंकि ईश्वर को पाना बहुत कठिन है और आपने ईश्वर के रूप में पिता को पा लिया है। यह संभव है कि वह आपको ईश्वर के ठिकाने का कोई संकेत बता दे।
जीससने किसी व्यक्ति को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। एक शहर से दूसरे शहर में जाकर यह कहना कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, यह कोई अपराध नहीं है। लेकिन यह यहूदियों के स्वाभिमान के लिए खतरनाक था, क्योंकि एक गरीब इनसान उनसे कह रहा था कि वह ईश्वर का पुत्र है! अन्यथा यह एक निर्दोष मामला था, उस बेचारे पर तनिक भी क्रोध प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं थी!
आपको स्वच्छ और बोझ-रहित होना होगा, क्योंकि आप शिखर को छूने जा रहे हैं। ये सारे बोझ आपकी प्रगति को बाधित कर देंगे। आप सत्य को जानने जा रहे हैं, इसलिए सत्य के संबंध में किसी धारणा को मत ढोएं, क्योंकि यही धारणा आपके और सत्य के बीच में अवरोध बन जाएगी। -[ओशो]

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