विनय बिहारी सिंह
कई बार लोग तर्क करते हैं कि भगवान निराकार हैं या साकार? ऐसे विवाद का कोई अर्थ नहीं है। गीता में स्वयं भगवान कृष्ण कहते हैं- मैं साकार और निराकार दोनो हूं। चूंकि निराकार भगवान पर ध्यान केंद्रित करना साकार मनुष्य के लिए मुश्किल है, इसलिए साकार भगवान को ही इष्ट मानना उचित है। श्रीमद् भागवत में लिखा है कि भगवान के किस रूप पर ध्यान केंद्रित किया जाए। कहा है- भगवान श्रीकृष्ण के चतुर्भुज रूप का ध्यान करना चाहिए। भगवान के बाईं ओर वाले दोनों हाथों में से एक में शंख और एक में पद्म (कमल) है। दोनों दाईं ओर वाले हाथों में से एक में चक्र और गदा है। गले में वनमाला और कौस्तुभ मणि है। चेहरा अत्यंत मृदु और आंखें ध्यान करने वाले पर कृपा बरसा रही हैं। भगवान ध्यान करने वाले की तरफ देख कर कृपा से मुस्करा रहे हैं और भक्त की तरफ शांति और आनंद की तरंगें प्रेषित कर रहे हैं। उनकी कृपा भक्त के चारो तरफ बरस रही है। यह ध्यान करते करते कल्पना कीजिए कि आप भगवान में ही घुल रहे हैं। आप और भगवान एक ही हैं।
इसका अर्थ हुआ कि पहले भगवान को साकार रूप में ग्रहण कीजिए। धीरे धीरे आप स्वयं निराकार में पहुंच जाएंगे। क्योंकि साकार रूप सीमा के अंदर है। लेकिन निराकार रूप असीम है। अनंत है। इसीलिए भगवान साकार और निराकार दोनों हैं।
aap bahut ander ki baat likhate hain, acha lagta hai, har koi is gahai ko nahi samajh sakta, magar trika to yahi hai
ReplyDeletePata nahin aap kab aankhen kholenge...Bhai vedon main jo likha hai kya wo sab jhoot hai...
ReplyDelete1-"Ekam evadvitiyam- matlab wo akela hai, bina kisi doosrey ke.-[Chandogya Upanishad 6:2:1]
3-"Na tasya pratima asti"
uski koi pratima nahin hai, koi akaar nahin hai.
[Svetasvatara Upanishad 4:19]
Na samdrse tisthati rupam asya, na caksusa pasyati kas canainam."
usko dekha nahin ja sakta...
[Svetasvatara Upanishad 4:20]
Matlab eeshwar ko sirf mehsoos kiya ja sakta hai...
Sri krishna bhi kisi bhagwaan ko maante the aur Raam bhi ek bhagwaan ko maante the...magar kuchh murkh Avtaaaron ko bhi bhagwaan samjh bethe aur asli bhagwaan ko hi bhool gaye.Aap se anurodh hai vedon ko padhiye aur upnishad, purano ko padhiye.