ये रही तुम्हारी टिप्पणी और साथ में है मेरा जवाब ताकि डा.साहब की पोस्ट की तरह कोई गलतफ़हमी पैदा न हो...
हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा, तू जिस तरह से भभक रही है इससे तो साफ़ जाहिर होता है कि तू जिस्म से नहीं दिमाग से भी हिजडा है. तेरी औकात क्या है मै जान चूका हूँ, मेरी औकात नापने का प्रयास मत करो, तेरे जैसी बेहूदी शख्स से मै मुह भी नहीं लगाना चाहता. मैंने डॉ रुपेश को कोई गाली नहीं दी थी, बस सलीके से एक जवाब लिखा था कि ''कृपया अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करे. अन्यथा ये समझा जायेगा कि आपकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है.'' रही बात शराफत की चादर ओढ़ने की बात तो मै बता दू कि ये चादर नहीं मेरा व्यक्तित्व है. और तेरी जैसी नाली के कीडे के साथ मै कोई भी रहम नही रखता. आइन्दा सलीके से जवाब देना. तू भडासी है मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पर मै जो हु उससे तुझे जरूर फर्क पड़ेगा.. डॉ रुपेश इतने अच्छे इंसान है, इसके लिये उन्हें धन्यवाद, पर क्या अपनी बात कहने के लिये या उसका महत्व बढ़ाने के लिये गाली और अभद्र भाषा का प्रयोग करना उचित है. क्या रुपेश साहब अपने घर में अपने परिवार के सामने ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते है. अपनी बात या अपनी भडास निकलने के लिये सलीके दार शब्दों का भी इस्तेमाल हो सकता है. ये जरूरी नहीं कि गाली या बेहूदी भाषा बोलकर ही भडास निकली जा सकती है. और हा जो कुकृत्य बड़े समाज में क्लबों में होते है क्या वो गाँव की गलियों में नहीं होते. अच्छे और बुरे लोग हर जगह है, सिर्फ गाली बोलकर बात करने वाले ही साहसी, स्पस्टवादी, नेक विचार और साफ़ दिल नहीं होते.
राजीव करूणानिधि! तुमने डा.रूपेश के ब्लाग आयुषवेद पर जाकर क्या टिप्पणी करी थी वो तो तुम भी जानते हो और डा.साहब भी वरना इस तरह से तुम्हें हगने के बाद लीपा पोती करने की जरूरत न पड़ती। तुमने डा.साहब को उनके ब्लाग पर जाकर जो टिप्पणी करी थी उसके बाद मैंने पोस्ट लिखी थी क्योंकि मुझे भी तुम जैसे फटीचर एक चाय पर खबर लिखने वाले चिरकुट पत्रकार के मुंह लगने में दिलचस्पी नहीं है पता नहीं एड्स वगैरह हो गया तो मैं तो परेशान हो जाउंगी तुममें तो इतना स्वीकारने का साहस नहीं है कि दम से कह सको कि हां डा.रूपेश को गाली दी क्या उखाड़ लेगा वो मेरा....। लेकिन इतना स्वीकारने के लिये आत्मबल चाहिये तुम्हारे जैसा कीड़ा सत्य को गलती करने के बाद न मानने के झूठे दम्भ का पोषण करने में ही पूरी जिंदगी गुजार देता है। डा.साहब को उनकी अच्छाई का प्रमाणपत्र तुम जैसे मुखौटाधारियों से नहीं चाहिये पहले तुम अपने गलीजपन को दूर कर लो फिर उनके ऊपर कोई टीका-टिप्पणी करने की औकात होगी तुम्हारी। अगर साहस है तो जो लिखा था उसे उन्ही शब्दों में फिर से लिखो फिर देखो कि भड़ासी होने से क्या-क्या फर्क पड़ता है अविनाश दास जैसे मठाधीश को भी ऐसी ही गलतफहमी थी। मैं ही क्या, सारे भड़ासी इस बत को स्वीकारने में घबराते नहीं कि उनके भीतर भी बुराइयां है। अब जरा तुम अपनी औकात का ढोल पीटो कि मेरा क्या उखाड़ लोगे बेटा इधर तो कुछ है ही नहीं लेकिन अगर हम चाहें तो तुम्हारा जरूर उखाड़ देंगे। भाषा की पिपिहरी बजाने से तुम अच्छे हो गये तो बने रहो रजनीश झा,यशवंत सिंह, डा.रूपेश श्रीवास्तव को तो तुम अभी जानते हो क्योंकि तुमने अभी पत्रकारिता करते हुए ब्लागिंग का "सफर" शुरू करा है वरना भड़ास का यू.आर.एल. भी टाइप करने से पहले हजार बार सोचते लेकिन फिर भी तुम्हारी हिम्मत न होती।
हम सब बेहूदे, कुंठित, गन्दे, बुरे, गलीज़, गालीबाज, दारूबाज, अभद्र, नीच और हर तरह से बुरे हैं हमसे मत उलझो। तुम्हारी औकात का मापन करके तुम्हें बताएंगे कि तुम कितने बड़े पत्रकार और ब्लागर हो। आओ दिखाओ अपना "अच्छा" व्यक्तित्व......। एक बात याद रखना बेटा कि गाली मत देना क्योंकि तुम जैसे लोग गाली नहीं देते और देते हैं तो स्वीकारने की दम नहीं रखते। तुम कितने सलीकेदार हो और तुम्हारे क्या संस्कार हैं वो तो तुमने डा.साहब के ब्लाग पर जाकर अपनी टिप्पणी से बताया है अब जरा मेरे जैसे नाली के कीड़े की औकात मैं तुम्हें बताती रहूंगी जब तक तुम्हें सही करके तुम्हारा मुखौटा उतार कर तुम्हारा असली चेहरा सामने नहीं ले आती। तुम अब अपनी शराफत की वैचारिकता का गोबर हगो ताकि पता चले कि तुम खसिया बैल हो या सांड........आओ.....आओ .....सींग मारो हमें हम तुम्हारी पिछाड़ी में डंडा ठोंक रहे हैं।
नाम के आगे करुणानिधि लगाने का नाटक करते हो लेकिन एक बात साफगोई से मानते हो कि हमारे जैसे नाली के कीड़ॊ पर तुम्हे रहम नहीं आता क्योंकि तुम्हारी करुणा का भी नाटक अब समाप्त होने वाला है......शटर डाउन होने वाला है बेटा।
सीस पगा न झगा तन पे...आके भड़ास पे हगा तन के...
ReplyDeleteकरुणा करके करुणानिधि रोए...
आओ भड़ास-भड़ास खेलते हैं राजीव बाबू
जय जय सूरदास
जय जय भड़ास
ye राजीव करूणानिधि kaun hain ?
ReplyDeleteinke blaog ka address kya hai ?
kya koyi bataayega mere ko ?
भड़ास में गाली- गलौज कोई नई बात नहीं है, ठीक भी लगता है भड़ास के सच उगलने की ताकत की वज़ह से बड़े बड़े मठाधीश ना सिर्फ डरते हैं पर राजीव करूणानिधि के बहाने जो हो रहा है. मेरे मुताबिक ये उचित नहीं, देश में समाज में मुद्दे और भी हैं जिनपे मनीषा जी अपनी भारी भरकम भड़ास निकाल सकती हैं . लेकिन लगता है राजीव के बहाने वो खुद को एक अच्छा भडासी और पुरानी ब्लॉगर साबित करना चाहती हैं.
ReplyDeletejai bhadas
अखिलेश बाबू,मुद्दों की जुगाली करना और खुद को नया या पुराना भड़ासी सिद्ध करने के लिये कोई बहाना तलाशना मेरे लिये जरूरी नहीं है पर क्या बात है आप लग रहा है कोई पूर्वाग्रह पाले प्रतीत हो रहे हैं?मुझे जो कहना है वो मैंने कहा है और उचित अनुचित के आपने जो निजी पैमाने बनाए हैं वो सार्वभौम हैं क्या आप इस भ्रम में हैं जो इन्हे मुझ पर थोप रहे हैं। आप भी राजीव करुणानिधि जैसे ही करुणावान हैं क्या बताइये जरूर???
ReplyDeletees blog ka naam भड़ास nahi
ReplyDelete" HANGASH" hona chahiye.....
मनीषा जी आपसे भला कैसा पूर्वाग्रह, मैं आप को जनता तो नहीं पर राजीव करूणानिधि के बहाने आप को पहचान जरुर गया हूँ. भड़ास निकालिए पर किसी के कमेन्ट से इतना घबराने की क्या जरुरत है, आखिर ब्लॉग में कमेन्ट का आप्शन होता भी तो इसी लिए है की आप अपनी राय दे सके,घबराइये नहीं राजीव करूणानिधि या अखिलेश जैसे टुच्चे आप जैसे महानतम ब्लॉगर को कमेन्ट देते रहेंगे.
ReplyDeleteभड़ास निकालिए और दुसरो की भड़ास सहिये और कहिये
जय जय भड़ास
बहन मनीषा और भाई राजीव को चरण स्पर्श, जहाँ तक मेरी जानकारी है लेखनी में गली गलोज के मद्धम से आपनी बात करना कोई नई बात नहीं है. कशी नाथ सिंह ने जब काशी का आसी लिखा था तब भी ये विवाद उठा थ.
ReplyDeleteविचारों को प्रकट करते हुए उसे बोझील शब्दों से और बोझिल करना अब गए दिनों की बात है . फिर प्रश्न उठता राजीव जी ने गलत कहा या किया तो उनका भी उग्र होना स्वाभाविक है. कई लोगों की तरह वो भी इस नई विधा को पचा नहीं पाए.
जय जय भड़ास