2.12.08

यकीन मगर कब तक

क्या लिखूं और लिख लिख कर होगा क्या?मुंबई नहीं हुई गरीब की भैंस हो गयी .. जो चाहे जब चाहे दुह ले जाए.. अभी माले गावं चल ही रहा था की ये सब हो गया... चुनाव के ठीक एक दिन पहले... पता नहीं क्या सच है क्या ... झूठ इतना तो तय है की आप तब तक ही जिंदा हैं जब तक कोई आपको मारना नहीं चाहता...बाकि डेमोक्रेसी वगैरह अब दिल के खुश रखने का ख्याल बस रह गया है.तो ... जिंदा है तो ज़िन्दगी की जीत पर यकीन कर..कम से कम तब तक , जब तक तेरे शहर में कोई धमाका नहीं हो जाता!!!!

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