13.1.09

कहीं मीडिया सरकारी प्यानो न बन जाए

पंकज व्यास, ratlam
किसी महान विचारक ने ठीक ही कहा है कि मीडिया वह प्यानो है, जिस पर अगर सरकारी नियंत्रण हो जाए, तो वह उसमें से सरकार अपने हिसाब से सूर निकालेंगी। सरकार जिस तरह से कानून लाना चाहती है, उससे तो साफ जाहिर होता है कि मीडिया से अब अपने हिसाब से सूर निकालने का मन बना लिया गया है।
अगर, सरकार की मंशा यही है, तो समझिए कि वह दिन दूर नहीं जब मीडिया सरकारी भोंपू बन जाएगा, जिसमें से वहीं आप सुन-पढ़ पाएंगे जो सरकारें चाहेगी। मीडिया सरकार के हाथों की कठपुतली और जन-जन बेबस, जनता की आवाज पर ताला और चारों तरफ सरकारी राज और लोकतंत्र को खतरा..
.विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोक-आवाज को पाबंदी लगाने की तैयारी और वह भी ऐसे समय जब गणतंत्र का महापर्व 26 जनवरी आने को हैं, अपने आप में कई सवाल पैदा करती है। वैसे भी मीडिया पर अुंगली उठाना अब फैशन बन गई है, कहीं यह फैशन रिवाज न बन जाए...
देखो इस फैशन-फैशन में कहीं ऐसा न हो कि यह फेशन गले की हड्डïी बन जाए, मीडिया सरकारी प्यानों बन जाए , जिसमें से सरकारी सूर भर सुनाई देते रहे और लोक-आवाज गुम हो जाए,
उठो, जागो जनता की आवाज कहीं बंधक न बन जाए। इसके लिए लौकतंत्र के पैरोकारों को जागना ही होगा।
(यशवंत जी कृपया आपका पोस्टल एड्रेस सेंड करें, ताकि आपको दैनिक प्रसारण की प्रति भेजी जा सकें। इसमें आपके दोनों आर्टिकल आइए, विरोध करें ताकि हम मुंह दिखा सकेंमीडिया पर सरकारी नियंत्रण के लिए 'काला कानून' ! प्रकाशित किये जा रहें है। हाँ, कांटेक्ट नंबर भी बजें। मेल है vyas_pan@rediffmail.com)
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