17.1.09
छत्तीसगढ़ः अबुझमाड की अबुझ पहेली
अविभाजित मध्यप्रदेश में पांचवी क्लास में पढ़ा करते थे छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है, जिज्ञासु, अबोध,मन सोचता था कि आखिर धान का कटोरा क्या है.....क्या किसी बॉउल में धान रका है या फिर कुछ और किसी तरह से इस सवाल का तो जबाव मिल गया लेकिन एक प्रस्न जो मन में फंसा रहा वो ये कि आखिर अबुझमाड़ के वनवासी क्या है.....ये बस्तर क्या है.....सालों बाद जब इस राज्य को देखने समझने और आत्मसात करने का मौका मिला तो सबसे पहले इसी सवाल ने घमासान मचाया.......मीडिया एक माध्यम है लेकिन ये बात इसके लिए अप्रासंगिक हो चुकी है...जबकि मेरे लिए बिल्कुल नई...तब समसामयिकता की तूती फूंकने वाले प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उम्मींद ही करना बेकार है...कभी प्रिंट तो फिर भी दे सकता है लेकिन अद्दतन होने का दाबा करने वाले टीव्ही माध्यम से तो कभी आशा ही नहीं रही........किसी तरह से लोकल के लोगों से जानने की कोशिश की मगर फिर वही बात सामने आई...उनका खुद की खुद के प्रति असंतोष डर भय सामने आया संपदा पर सीना तानने वाले एक हमारे साथी ने ख़ूब बखान किया लेकिन फिर भी वे इसके बारे में उतनी जानकारी नहीं दे पाये.....तब महाराज का करहों...हमारे साथी जो बस्तर से है उनसे जानना चाहा जो जानकारी मिली वो दे रहा हूँ.....बस्तर का अबुझमाड़ का इलाका जिसका आज तक भारतीय भू-अभिलाखागार में कोई रिकॉर्ड नहीं है....कोई आज तक यहाँ का सर्वे नहीं कर सका है ग़ुलाम भारत में अंग्रेज़ों ने ज़रूर ही इस दिशा में प्रयास किया था लेकिन तत्कालीन हालात आदिवासियों की ख़िलाफत के बन गये तो ये काम फिर ठंडे बस्ते में गया तो फिर निकला नहीं आज़ाद भारत में किसी ने भी ऐंसा प्रयास तक नहीं किया किसी ने अगर कोशिश भी की तो भारत की राजनीति मासाअल्लाह है जो कुछ भी करो तो सारे मानवाधिकार आयोगों के दढ़ियल लोग चील की तरह ताड़ने लगते है...तो फिर वहीं राग अलापा गया वे नहीं बदलना चाहते ख़ुद को तो क्यो ज़बरन ऐंसा किया जाए.....और फिर कभी कोई कोशिश नहीं हुई.....कलेक्टर (डीएम) की खास इजाज़त से ही घूमा जा सकता है इस जगह जाने की भी अनुमति नहीं है....कारण प्रशासन ग्यारंयटी नहीं ले सकता...आखिर मुझे समझ नहीं आया क्यों ऐंसा होता है.....बस्तर कभी भारत का सबसे बड़ा ज़िला हुआ करता था....आज इसके टुकड़े किये गये कि प्रशासन बेहतरी से काम कर सके.....इस जगह के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है बस जाने की इच्छा है ....नक्सल का गढ़ यह एरिया आम लोगों की लापरवाही, सरकारों की निकम्माशाही,प्रशासन की नज़रअंदाज़ी और प्रबुद्धों की महज़ कलम घसीटी के कारण बुरी तरह अपेक्षेत है.....जो अपने आप में दुनिया की खूबसूरती लिए है बताना चाहता हूँ.....यहाँ दुनिया में सबसे ज़्यादा साल वनों का घना छायादार एरिया है......इतना ही नहीं यहाँ भारत का नियाग्रा फॉल याने चित्रकोट भी है......यह सब दखने की बड़ी तमन्ना है आप सभी की तरह....मुझे भी इंतज़ार है किसी मेकमोहन का या सर कलिंगम का इंतज़ार है जो इस जगह पर शोध कर दबेकुचले लोगों में आत्मबल भरेगा औऱ नये इतिहास के साथ ही भारत के गौरवशाली कल में आज की ख़ुशबू भरेगा.........ऐंसे किसी अंग्रेज़ की राह तकता हूँ.......
आप के विचारों से अवगत हुआ पढ़ के अच्छा लगा की छत्तीसगढ में भी अब विचारो की क्रांति की शुशुवत हो चुकी है, आप का प्रयास सराहनीय हिया हमें भी अपने विचर भेजे ।
ReplyDeleteआप के विचारों से अवगत हुआ पढ़ के अच्छा लगा की छत्तीसगढ में भी अब विचारो की क्रांति की शुरुवात हो चुकी है, आप का प्रयास सराहनीय है हमें भी अपने विचर भेजे ।
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