संपन्न वर्ग के ज्यादातर लोग कभी इतने अन्धविश्वासी नहीं रहे जितने कि आज हैं ! आज समाज का शिक्षित और सुविधाभोगी वर्ग जिस तरह अपने जीवन में तर्क-विरोधी होता जा रहा है - वो शर्मनाक व निराशाजनक है !
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि देश में निर्धन व निम्न वर्ग में तर्क और विवेकशीलता का अनुपात निरंतर बढ़ रहा है ! इनके द्बारा त्यागे जा रहे अंधविश्वासों को अब मध्य व उच्च वर्ग ने ग्रहण कर लिया है, अन्तर केवल इतना है कि संपन्न लोगों के ओझा और बाबा भी खाते-पीते वर्गों से आने लगे हैं ......धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलते हुए लेटेस्ट टेक्नोलोजी से संपन्न !
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aapne sahi likha hai jab tak ham andhvishwash ke is mayajaal se nahi niklenge ham kabhi tarakki nahi kar oaayenge...
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