10.2.09

एक पल ये प्यार का

चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल से दिल को मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
हवा में नया रंग है, फिजा में भी उमंग है
मचलता अंग अंग जैसे बजता जलतरंग है।
जश्न है ये प्रीत का, गीत है बहार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
जगे हैं अरमान दिल में फ़िर से एक बार
कह दे दिल की बात जिसपे करते जानिसार
आंखों में बसा लें चेहरा अपने यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
होंठ कंपकंपा रहे, आँख डबडबा रही
उसकी नजदीकियां धड़कनें बढ़ा रही
एसा लग रहा है जैसे जाम हो खुमार का
चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
संदीप तिवारी
हिंदुस्तान, आगरा

1 comment: