थी बहुत दिन से अधूरी जो कमी पूरी हुई
तेरे आने से हमारी ज़िन्दगी पूरी हुई।
द्वार, छत, दीवार, आँगन, कोने-कोने देख लो,
सब हुए रोशन तुझी से रौशनी पूरी हुई।
आंख से चलकर उतर आए जो आंसू होंठ पर,
है बहुत राहत, चलो कुछ तो हँसी पूरी हुई।
सब लबालब हो चुके थे आँख, सपने, नींद, मन,
नाम लेते ही तेरा ये साँस भी पूरी हुई।
देख ली रोशन नज़र तेरी तो हमको ये लगा,
ये ग़ज़ल जो थी अधूरी, बस अभी पूरी हुई।
चेतन आनंद
बहुत शानदार गजल। बधाई
ReplyDeletebhai sahab achhi gazal.
ReplyDelete