हेमेन्द्र मिश्र
सोमवार की सुबह पुस्तकालय में किताबों के बीच मुझे नागार्जुन रचनावली दिखी। इसके भाग-2 के पन्नों को पलटते वक्त मेरी नजर एक कविता पर टिक गई। यह कविता पी।वी. नरसिंहराव सरकार में केन्द्रीय संचार मंत्री रहे सुखराम पर लिखी गई है। 1996 ई. में लिखी गई इस कविता में सुखराम के बहाने सत्ता पर किए गए कटाक्ष को आप भी महसूस करें -
सुखराम: शर्ट रूप सुक्रम
अब तक कहां छिप थे
ये ‘भारत-रत्न’
हिमाचल में पैदा हुए...
पले-पुसे बड़े हुए
पी.वी. की गोद में
बैठे, 5 वर्ष तक मौज किया
संचार मंत्री रहे
पी.वी. ने प्यार से
पीठ सहलाई
अपने आप
जादुई तरीके से
नगदा-नगदी करोड़ों की रकम
लाॅकर में संचित
होती रही
3 करोड़ से ऊपर हो गई
परिवार की महिलाओं और
बाल-बच्चों के आभूषण...
हीरा-मोती-पन्ना-पुखराज
जड़ित गहने
और न जाने क्या-क्या
हिमाचल से बाहर, सुदूर
हैदराबाद(आंध्र) के बैंक के
अंदर लाॅकर से निकले हैं...
जय हो सुखराम की !
जय हो पी.वी. के
अंतरंग सखा की !!
मगर, दरअसल
‘सुखराम’ कोई एक
व्यक्ति नहीं गोत्र है-
पूरा का पूरा- पी.वी.
नरसिंह राव इस
गोत्र के बीज पुरुष हैं
राव अगर 5 वर्ष और
प्रधानमंत्री रह पाते तो
पट्ठा सुखराम
जाने क्या हो जाता !
सुखराम- शार्ट रूप
‘सुक्रम’ तब हो जाता
त्रिभुवनव्यापी-
‘इंटरकांटिनेंटल’
विश्व का महानगर
कोई शायद ही छूट पाता
सुक्रम की पचास -
पचपन मंजिली इमारतों से !
इयरबुक भर जाते
सुक्रम से ...
१८ अगस्त १९९६
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