20.4.09

ईश्वर में विश्वास को पिछड़ापन कहते हैं वे


विनय बिहारी सिंह

ईश्वर को मानना या न मानना व्यक्तिगत मामला है। जो मानता है उसका भी और जो नहीं मानता उसका भी आदर करना चाहिए। लेकिन कुछ लोग ज्यादा प्रगतिशील बनने के चक्कर में ईश्वर में विश्वास करने वालों की खिल्ली उड़ाते हैं। या उन्हें कमतर बताते हैं। उनका कहना है कि ईश्वर- फीश्वर कुछ नहीं होता। अपना कर्म करते रहो, उसका फल अवश्य मिलेगा। यह कह कर वे खुद को इस ब्रह्मांड का जानकार मानते हैं और ईश्वर में भरोसा रखने वालों को लगभग मूर्ख की संग्या देते हैं। दुनिया भर में ईश्वर को मानने वाले लोग हैं औऱ उनकी अपनी आस्थाएं हैं। लेकिन वे लोग ईश्वर को गाली देने वालों के बारे में कुछ नहीं कहते। वे चुपचाप अपनी दिनचर्या में मस्त रहते हैं। यह पूरा ब्रह्मांड ही ईश्वर का प्रमाण है। खुद मनुष्य और सारा जीव- जगत और निर्जीव जगत ईश्वर के होने का प्रमाण है। और ईश्वर में गहरी आस्था रखने वाले का मजाक क्यों उड़ाया जाना चाहिए? पूजा- पाठ करने वाले को हीन दृष्टि से क्यों देखा जाना चाहिए? यह तो विचित्र मनःस्थिति का परिचायक है। कोई व्यक्ति क्या खुद ही पैदा हो गया? और क्या खुद ही उसने अपने माता- पिता को चुना? क्या जन्म लेने का समय उसने खुद चुना? अगर नहीं तो फिर ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल क्यों? अगर जन्म औऱ मरण का दिन तय है तो यह किसी व्यक्ति ने तो नहीं तय किया है? निश्चय ही किसी बड़ी शक्ति ने तय किया है औऱ उसी का नाम ईश्वर, परमात्मा या भगवान है। जन्म के पहले हम कहां थे? और मरने के बाद कहां चले जाते हैं? है किसी के पास इसका जवाब?

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