आतंकवाद से रक्षा बनाम सम्प्रदायिक राजनीति-1
हमारे देश हिंदुस्तान का नाम 1947 में एक बड़े सपने के साथ हुआ था, उस सपने के साथ जो हमारे संविधान में निहित है। यह सपना था एक ऐसे देश का जहाँ हर कोई व्यक्ति या वर्ग किसी दूसरे व्यक्ति या वर्ग की मिलकियत में जीने को मजबूर न हो। हमारे देश की खासियत है धर्मों , जीवनशैलियों और विश्वासों की विविधता और आपसी मेल-जोल व सहनशीलता । ऐसा नही है की हमारे यहाँ कभी विभिन्न जातियों या धर्मो के लोगो में टकराव न हुए हो लेकिन जीत हमेशा उन्ही की हुई है जो अपने से फर्क लोगो को इज्जत करते हुए आपसी मुहब्बत के साथ जीने की हिमायत करते रहे।आज़ादी के बाद के हिन्दोस्तान में जहाँ पूरा देश अशिक्षा , गरीबी,अन्धविश्वाश और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, वहीं कुछ आम आवाम की इन तकलीफों से बेखबर उन्हें जात या धर्म के आधार पर लड़ने की फिराक में थे । गाँधी जी के हत्यारे सरहदों के बटवारे के बाद जनता के दिलो के बटवारे में तन मन धन से लगे रहे । गरीबी गैर बराबरी और भूख से जूझती जनता को एकजुट होकर इन समस्याओं से निपटने देने की बजाय इन लोगो ने लगातार उनकी जातीय और धार्मिक पहचानो को तीखा करने और उनके दिलो में दूसरी जात या धर्म के लोगो के लिए तरह-तरह से नफरत पैदा करने का काम किया । इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना , झूठे इतिहास की रचना करना हिंसक जातीय धार्मिक गौरव को बच्चो के दिलो में जगाना और साझी, विरासत को पूरी तरह नकारना इन लोगो की कार्यशैली के हिस्से रहे है । सभी धर्मो और जातियों में ऐसे स्वयंभू नेता तेजी से उभर कर आए जिन्होंने आवाम की आम जिंदगी के कठिनाईओं को दरकिनार करके उनकी जातीय धार्मिक असमिताओं को हिंसक रूप से पैना किया और उनके दिलो में यह जहर भरा किया उनकी सभी मुसीबतो की जड़ उनसे फर्क जाती धर्म के लोग है । कोशिश यह की धार्मिक उन्माद सभी दूसरी चिन्ताओ को पीछे छोड़ दे और जनता भूख गरीबी जैसी समस्याओं से एकजुट ताकत से न लड़ सके । सत्ता की कुर्सी पर पहुचने और वहां टिके रहने के लिए भी जनता को विभाजित रखना और उन्हें धार्मिक जातीय टकराव में उलझाया जाना जरूरी था वरना जनता यह सवाल पूछना नही भूलती की भूख अशिक्षा गरीबी बीमारी और हिंसा जिनसे सभी जातियों और धर्मो के लोग परेशान है से निपटने के लिए सत्ता पर बैठे लोगो ने क्या किया सत्ता पे काबिज होने की इस जनविरोधी आपा -धापी के साथ धार्मिक नेताओं की सांठ -गांठ ने जनता की समझ और संघर्ष को कमजोर बनाने का काम तो किया ही साथ ही उन धार्मिक बहुसंख्यावादी संगठनो को भी मजबूत किया जो एक लंबे अर्से से हिन्दोस्तान को हिंदू राष्ट्र के रूप में देखना चाह रहे थे और किसी भी दूसरे धर्म को इस देश में जिन्दा रखने की उनकी सरत थी या तो उसका हिन्दुकरण या फिर हिंदू धर्म की आधीनता इस अर्थ में वह मुस्लिम विरोधी होते हुए भी इस्लामिक देशो को आदर्श मानकर उनका अनुकरण करते रहे अल्पसंख्यको के तथाकथित नेताओं की आत्मकेंद्रित और धर्मकेंद्रित राजनीति ने बहुसंख्यकवादी राजनीति को चुनौती देने के बजाय वास्तव में मदद ही दी की राजनीति में तेजी से बढती द्दृष्टिविहिनता, विवेकहीनता ,अपराधीकरण में संवैधानिक मूल्यों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी को इतना कमजोर किया की इन मूल्यों के सीधे और मुखर उल्लंघन को भी राज्य ने नियंत्रित नही किया आम जनता के लगातार टूटते भरोसे और सुकून के बीच तमाम वो ताकतें जनता का हितैषी होने का चालिया रूप रखकर सक्रिय हुई जो पहले से ही संविधान विरोधी मूल्यों के लिए काम कर रही थी ,जैसे हिंदू राष्ट्रवाद का सपना देखने वाले संगठन ।
क्रमस :
डॉक्टर रूप रेखा वर्मा
लेखिका लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति है ।
आतंकवाद का सच में प्रकाशित ॥
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