29.4.09

रिश्तों की गांठ .....

जीवन मैं दर्द
एक नही है
कभी गम
कभी त्रास
कभी कुंठा
कभी ख़ुद को झुठलाने वाला
रोज एक नया सपना है ।

जीवन सिर्फ़ एक चादर है
जिसमे भरा है गर्द गुबार
कुछ अपना
कुछ दूसरो के समान
कुछ कम का
बाकि बेकार ।

सब कुछ समेटकर
चादर मैं
लगा दी जाती है
रिश्तों की गांठ
ढोने के लिए
ता उम्र भर ।

एक छोटा सा कमजोर धागा
वजन पड़ने पर
नहीं संभाल पता है
ख़ुद को
और बन जाता है
चादर मैं छेद ।

चादर से हर रोज गिरता है
एक एक सामान
अंत मैं
रह जाती है
सिर्फ़ एक गांठ
कपड़ा
कितना कमजोर क्यों न हो
मुश्किल है तो
सिर्फ़
एक गांठ को खोल पाना .........

2 comments:

  1. wahhhhhhhhhhh kya bhavo ko shabd diye hai ..haqiqat se ru-b-ru karate ye marmsparshi ahsaas yakinan tariif ke haqdaar hai

    ReplyDelete
  2. उसे तब तक जुड़ना ही कहते हैं, जब तक दो चीजें एक दूसरे में समा न जाएं. और गांठ इसी जुड़ाव के कहते हैं- जो अक्सर बांधी गई होती है. जो अपने आप बंध जाए- वो गांठ नहीं- इसी बंधन से तो एकाकार होने का रास्ता शुरू होता है. तब किसी गांठ की दरकार नहीं होती- दो गज (1+1)कपड़े मिलकर एक चादर बन जाते हैं- और फिर एकाकार होकर चांदनी रात की मद्धम लहरों में लहराते हैं.

    चाहत तो ऐसी है, लेकिन कहां- वो गांठ कपड़े का मर्म ही नहीं समझता।

    ReplyDelete