ज्यों-ज्यों लोकसभा चुनाव की तिथि नजदीक आ रही हैं, आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति उफ़ान चढती जा रही हैं। वाकयुद्ध कुछ इस अंदाज से लड़ी जा रहीं हैं कि जैसे यह भारतीय लोकतंत्र की आखिरी लड़ाई हो। शुरूआत हुई पीलिभीत में दी गई वरुण गांधी की विवादास्पद बयान से। और आज तक इस में अनगिनत अध्याय जुट चुके हैं। लोकतांत्रिक मान-मर्यादा भुला कर हर कोई अपनी गुणगान और दुसरे की हजामत करने पर तुला हैं। और इन सब के बीच आम जनता की परेशानी और तकलीफ़ें कोई भी सुनने को तैयार नहीं हैं। विकास को मुद्दा बनाने को कोई भी राजनीतिक पार्टी तैयार नहीं दिख रही। आम आदमी का तो जैसे कोई हैसियत ही नहीं रखता।
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