23.4.09

आपका वोट और बच्चों की जीत

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शिरीष खरे
यह
चुनाव का वक्त है और हर पार्टी का उम्मीदवार वोटर को अपनी तरफ खींचना चाहता है. लेकिन बच्चों से जुड़ा एक भी नारा नहीं गूंजता. ऐसे में चाईल्ड राईटस् एण्ड यू याने क्राई ने बच्चों के हक को मुद्दा बनाया है. क्राई ने बच्चों के हक के लिए चार्टर तैयार किया है. इस चार्टर में बच्चों की शिक्षा पर जीडीपी का 10 प्रतिशत और स्वास्थ्य पर 7 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने की मांग हुई है.

लोकतंत्र है तो चुनाव है और चुनाव है तो वोट. किसी पार्टी की ताकत उसका वोट-बैलेंस है. हर पार्टी का एजेंडा उसके वोट-बैलेंस के घटने-बढ़ने में खास भूमिका निभाता है. लेकिन बच्चे 18 साल के नहीं होते इसलिए वोट नहीं देते. इसलिए एक भी पार्टी को इस 40 करोड़ आबादी की फ्रिक नहीं रहती. इस बार क्राई ने आपके वोट से बच्चों के जीत की उम्मीद जतायी है. संस्था की इला डी हुक्कू ने बताया- ‘‘हम और हमारे सहयोगी चुनाव के उम्मीदवारों से सीधा संपर्क कर रहे हैं. हम उन्हें इस चार्टर के बारे में बता रहे हैं. हम यह भी देख रहे हैं कि उम्मीदवारों के पास बच्चों के मुद्दे हैं भी या नहीं.’’

क्राई के ही दीपांकर मजूमदार ने कहा- ‘‘हम चाहे उम्मीदवार बने या मतदाता, हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश की एक चौथाई आबादी के मुद्दों को पोलिटिकल एजेंडों में शामिल करें. इस तरह बच्चों को उनके बचपन से जुड़े सभी हक मिल सकेंगे.’’

क्राई मानता है कि हर साल 1,000 शिशुओं में से 70 की मौत हो जाती है. 5 साल से कम उम्र का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार बन रहा है. 52 प्रतिशत बच्चों के नाम स्कूलों से गायब हैं. बच्चों के हितों का प्रतिनिधित्व बच्चों की बजाय बड़ों के हाथों में होता है. इसलिए आपका वोट बच्चों की आवाज बुलंद कर सकता है. आपका एक फैसला बच्चों को स्कूलों का रास्ता दिखा सकता है. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं. उन्हें सम्मान से जीने का वादा मिल सकता है. उन्हें श्रम, शोषण और तस्करी से छुटकारा मिल सकता है. इस तरह आप बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, सुरक्षा, भोजन और खेलने का हक पाने में मददगार बन सकते हैं.

बाल हक चार्टर में

बच्चा होने की एक ही परिभाषा हो. इसमें 18 साल से कम उम्र के सभी लोगों को बच्चा माना जाए. इससे बच्चों पर असर डालने वाली सभी नीतियों और कानूनों में असंतुलन नहीं रहेगा. बच्चों की शिक्षा पर जीडीपी का 10 प्रतिशत और स्वास्थ्य पर 7 प्रतिशत हिस्सा खर्च हो. 6 से 18 साल तक के बच्चों को पड़ोस के स्कूलों में दाखिला मिले. 6 साल से कम उम्र के बच्चों को आंगनवाडी की सुविधा हो. बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का हक देने वाले बिल में जरूरी फेरबदल हो. इससे बच्चों की शिक्षा की मूल भावना साकार हो सकेगी. शिक्षा में निजीकरण बंद हो. सभी प्राइमरी स्कूलों में बेहतर गुणवत्ता का मिड-डे-मिल दिया जाए. इसमें स्कूल न जाने वाले बच्चों को भी जोड़ना होगा. इसे पूरे साल चलाया जाए.
कृषि सहित सभी क्षेत्रों में हर प्रकार की बाल-मजदूरी को पूरी तरह रोका जाए. बाल-मजदूरों और कामकाजी बच्चों को औपचारिक शिक्षा में लाया जाए. घरों में काम-काज और बच्चों की देखभाल करने वाली लड़कियों पर खास ध्यान दिया जाए. नेशनल चाईल्ड पोलिसी (1974) की दोबारा समीक्षा की जाए. संविधान और संयुक्त राष्ट्र के बाल हक कन्वेंशन के मुताबिक इसका दायरा बढ़ाया जाए. भोजन की सुरक्षा और उसके अधिकारों की बात करने वाली नीति लागू हो. ऐसे कानून बनाए जाएं जिससे कोई बच्चा कुपोषण का शिकार न बने. गरीबी रेखा को तय करने वाले पैमानों पर दोबारा सोचा जाए. पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में गरीबों को अनाज देने वाले पैमानों पर भी दोबारा सोचा जाए. बच्चों के यौन शोषण और उनकी तस्करी रोकने के लिए असरदार कानून हो. विकलांग बच्चों को भी बराबरी से जीने के मौके मिलें.

बाल हक से जुड़े मुद्दे

विस्थापन बच्चों के विकास को रोकता है। इससे शोषण की आशंकाएं पनपती हैं. इसलिए कमजोर तबकों का विस्थापन और असंतुलित विकास को रोका जाए. कमजोर तबकों की जमीन बचाने के लिए सेज एक्ट-2005 में बदलाव हो. पुनर्वास की बेहतर नीति बनायी जाए. शहरी गरीबों के लिए आवास का हक कारगर ढ़ंग से लागू करने के लिए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन का फिर से गठन किया जाए. इसमें निजीकरण पर जोर देने की बजाए सरकार को विकास की जबावदारी खुद लेनी होगी.
भूमि सुधार की ऐसी नीतियां अपनायी जाएं जिससे माईग्रेशन रूके. इससे बच्चों को अपने समुदाय और क्षेत्रों में ही विकास के मौके मिलेंगे. तटीय इलाकों के रहवासियों के पंरपरागत हकों को बचाने के लिए कोस्टल जोन मैनेजमेंट-2006 को हटाया जाए. इसके बदले कोस्टल जोन रेगूलेशन-1991 को अपनाया जाए. जनजातियों को वनों के इस्तेमाल का हक देने के लिए वनवासी एक्ट-2006 को लागू किया जाए. पेट्रोलियम, केमीकल एण्ड पेट्रोकेमीकल इन्वेस्ट एरिया एक्ट-2003 को हटाया जाए. हरेक के लिए घर, रोजगार और समान वेतन तय हो. इससे बच्चों के हक सुरक्षित होंगे. गरीब किसानों के लिए कृषि-नीति पर दोबारा सोचा जाए. असंगठित मजदूरों सहित सभी को सामाजिक सुरक्षा दी जाए. सांप्रदायिकता का विरोध हो और हर हाल में मानवीय हकों को बचाया जाए.

क्राई का नेटवर्क

क्राई का एक बड़ा नेटवर्क होने से इस केम्पेन को बढ़ावा मिल रहा है. क्राई पिछले 30 सालों से गरीब बच्चों और उनके समुदाय से जुड़ा रहा है. यह 18 राज्यों के 5,000 गांव और झुग्गियों में काम कर रहा है. यह लिंग, जाति, आजीविका और विस्थापन की तह तक जाता है. यह भूख, गरीबी, बेकारी, शोषण और अत्याचार से लड़ता है.

क्राई ने 2006-07 को 5,250 गांवो और बस्तियों के 4,97,343 बच्चों के साथ काम किया. क्राई ने समुदाय के साथ बंद पड़े 143 प्राइमरी स्कूलों को दोबारा चालू किया. क्राई ने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए लगातार जोर दिया. इसका नतीजा है कि 192 प्राइमरी स्कूलों में 1 भी बच्चा ड्रापआउट नहीं हो सका. क्राई ने 317 पंचायत शिक्षा समितियों को सक्रिय बनाया. 22,736 बच्चों को प्राइमरी स्कूलों तक लाकर शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा. इसलिए अबकि चुनाव में बच्चों के हक को मुद्दा बनाते ही क्राई को भरपूर समर्थन मिलने लगा है.

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