24.5.09

गुलशन

खिले हैं चारों तरफ़ हुस्न के गुलशन
फ़िर भी फाखों में गुजर रही जवानी
मेरी शिवा चलना यहाँ संभल संभल कर
वक्त के कांटे ख़त्म न कर दे कहानी मेरी
--------------- महेश शिवा

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