पार जा सकेंगे हम ,सोच ही निराली है ।
आग का समंदर है नाव मोम वाली है ।
हर तरफ़ अंधेरो की क्या करें शिकायत हम -
लौ दिये की गिरवी है कहने को दिवाली है ।
खून कैसे बिखरा है माँ के श्वेत आँचल पर-
बापू की अहिंसा आज तक सवाली है।
घी घडो में लिपटा है और पेट खाली है-
हक़ की बात करता ,कौन ये मवाली है।
कितने घर अंधेरो में सरहदों ने कर डाले-
हुक्मरां के कोठो पर आज भी दिवाली है ।
वो जवाँ से कहते है कोख सूनी होती है-
इस में तो गोवा है कुल्लू है मनाली है ।
जिंदगी गजल जैसी, जवानी तो यू समझें
आंसुओ की दौलत तो 'राही'ने सम्हाली है।
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
sarvottam
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