ऐसा नहीं लगता कि सत्ता विरोधी रुझान के भरोसे सत्ता में वापसी के विश्वास में हाथ-पर-हाथ धरे बैठी भाजपा ने चुनाव परिणामों से कोई सबक सिखा है। जनता द्वारा सत्ता न सही मगर प्रमुख विपक्ष की सौंपी गई जिम्मेदारी शायद इन्हें अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं लग रही ! या सत्ता न देने की इनकी नाराजगी जनता से भी उतनी ही है।
आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले, पाक की मुंबई हमलों की जाँच में ढिलाई, मंत्रिमंडल के गठन में सहयोगी दलों के दबाव में झुकती नजर आ रही सरकार आदि कई ऐसे मुद्दे थे, जिनपर आक्रामक और जागरूक विपक्ष की भूमिका निभाई जा सकती थी !
संभवतः ये मुद्दे विदेशी मूल, कमजोर प्रधानमंत्री, रामसेतु जैसे आकर्षक और भावनात्मक नहीं थे। अगर ऐसा ही है तब तो अपनी सुविधानुरूप मुद्दों की प्रतीक्षा और अगले 5 साल में सत्ता की शर्तिया और स्वतः प्राप्ति के सपनों में खोए रहने में कोई हर्ज तो नहीं ही है।
No comments:
Post a Comment