मिलकर भी मिल न सका जो ,
मन खोज रहा है उसको।सव विश्व खलित धाराएंअपना कह दूँ मैं किसको ॥याचक नयनो का पानीअवगुण्ठन में मुसकाता ।''
कल्याण -
रूप ,
चिर-
सुंदर-
तुम सत्य''
यही कह जाता॥पृथ्वी का आँचल भीगातरुनी -
लहर ममता में।निर्दयता की गाथायेंअम्बर -
पट की समता में॥-
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '
राही'
No comments:
Post a Comment