इधर मक्कारों के मोहल्ले में कई नामचीन पत्रकारों पर कीचड़ उछालने की कवायद के तहत मशहूर पत्रकार और देश के नामचीन रिपोर्टर आलोक तोमर को निशाना बनाया गया, दरअसल विस्फोट नामके ब्लॉग पर किन्ही आशीष अग्रवाल नामके सज्जन की रिपोर्ट को आलोक जी ने अपनी साईट डेट लाइन इंडिया में छाप दिया था, ऐसा उन्होंने किसी आर्थिक फायदे के लिए नही बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक एक बेहतर ख़बर को पहुंचाने की ललक और गरज के चलते किया था, चूँकि विस्फोट में बहुत साफ़ लिखा है की सर्वाधिकार अ ( सुरक्षित) यानी जनहित में विस्फोट पर छापी ख़बर का कोई भी भलामानुष इस्तेमाल कर सकता है, दुनिया जानती है विस्फोट के मार्गदर्शक संजय तिवारी जी बिना किसी आर्थिक फायदे के हित को केन्द्र में रखकर विस्फोट को चला रहे हैं,
आलोक जी ने भी अपनी कई बेहतरीन खबरें बिना किसी फायदे के विस्फोट पर लिखी, विस्फोट एक जैसे विचार और सोच रखने वाले लोगों का साझा मंच है, जिस ख़बर की चोरी करने का बेहूदा और घटिया आरोप पत्रकार आलोक तोमर पर लगाया जा रहा है उसके लेखक आशीष अग्रवाल न इतने बड़े पत्रकार हैं और न ही उनका लेख इस कदर उम्दा था की उसे चोरी करने की जरुरत पत्रकार आलोक तोमर को पड़ती, जिस पत्रकार की खबरों पर सत्ता और सत्तासीनों की कुर्सिया हिल गई और आज भी पत्रकार से लेकर तोमर को जानने
वाले उनके जुझारूपन और ख़बर के लिए जूझ जाने के जज्बे के कायल हैं क्या उस पत्रकार के लिए अपने किसी मित्र से कहकर किसी भी किस्म की ख़बर लिखवाना कोई बड़ा काम था, आलोक जी मुझ जैसे किसी भी जूनियर से कह भर देते और आशीष अग्रवाल से हजार गुना बेहतर ख़बर उनकी मेज पर पटक देने में शायद हम में से कोई भी एक पल की भी देर लगाता, आलोक जी के मीडिया में दुश्मन भी कम नही हैं लेकिन सच ये भी है की उनको चाहने वाले भी कुछ कम नही है, जिस पत्रकार को प्रभाष जोशी जी जैसा समर्पित पत्रकार बड़े गर्व और अदब से अपना शानदार शिष्य बताता है क्या उस पत्रकार को एक बेहद से गुमनाम पत्रकार की ख़बर चुराने की कोई जरुरत है, और खासकर तब जब ऐसे एक भी कदम से उस नामचीन पत्रकार पर एक बेहद घटिया आरोप लगने का खतरा भी मौजूद है, न तो आलोक तोमर इतने नासमझ हैं और ना दुनिया , आलोक जी से संवाद में यही बात साफ़ हुयी की सिर्फ़ लोगों को बेहतर ख़बर पदाने और उससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिचित कराने की गरज से उन्होंने ख़बर विस्फोट डॉट कॉम से लेकर डेट लाइन इंडिया पर छापी, विस्फोट पर बिना किसी आर्थिक फायदे के आलोक जी लिखते रहे हैं और जिस किस्म की पत्रकारिता संजय तिवारी और आलोक तोमर कर रहे हैं उसमे ख़बर का मतलब किसी को ब्लैक मेल करना या पैसा कमाना नही बल्कि सरोकारों को आगे करके लोगों में सही ग़लत का फर्क पैदा करने की कोशिश करना है, लेकिन अफ़सोस की एक बेहद शानदार पत्रकार पर उस इंसान ने कीचड़ फेंक दिया जिसका ख़ुद का चरित्र दागदार और विवादों से भरपूर रहा है, जिसे बाकायदा एक टीवी चैनल, अखबार और ना जाने कितने संस्थानों से मुहीम चलाकर निकाला गया, सस्ती और घटिया लोकप्रियता पाने के लिए ऊल जुलूल हरकतें करना जिसका पेशा हो उस बाजारू और ख़ुद को पत्रकार कहलाने वाले लम्पट को कोई सजा नही दे सकता,
इधर कई दिनों से देख रहा हूँ की अब आलोचना भी फायदा नुक्सान सोच समझकर लोग कर रहे हैं, चूँकि म्रणाल पाण्डेय, शशि शेखर, दीपक चौरसिया और इन जैसे तमाम लोग जो या तो नौकरी देने की हैसियत में हैं या फिर किसी भी पत्रकार का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं इनके तमाम स्याह और सफ़ेद कामों पर कोई ऊँगली नही उठा रहा वजह क्यूंकि सबको
अपने भविष्य की फिकर है, आदरणीय म्रणाल जी के कई स्याह कामों के ख़िलाफ़ और कई पत्रकारिता संस्थानों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए यशवंत सिंह हैं क्यूंकि उनको किसी के दरवाजे पर नौकरी पाने नही जाना है, संजय तिवारी हैं क्यूंकि उन्होंने अपने हित के लिए सोचा ही नही, आज जिस मंच पर देखिये हर घिसा पिता ऐरु-गैरू पत्रकार प्रभाष जोशी जी को गरिया देता है, एक साथी हैं ब्रजेश सिंह उन्होंने तो बाकायदा प्रभाष जी के सरोकारों पर ही ऊँगली उठा दी और पत्रकार आलोक तोमर के पत्रकारिता के लिए किए गए बलिदान ( तिहाड़ जेल में कैद होने को) को ही निशाना बना दिया और बेहद
सतहीऔर हलके तरीके से उनपर आरोप लगा दिया
जो काम आलोक तोमर के सिवाय कोई पत्रकार नही कर सका उसे बजाय
सम्मान देने के इसलिए कठघरे में खड़ा कर दिया गया क्यूंकि आलोक तोमर न किसी गुट में हैं और ना किसी मठ के मठा धीश, शायद इसीलिए हर ऐरा गैरा एक बेहद सम्मानित साथी को और उसके काम को सलाम करने के बजाय उसे सिर्फ़ इस बिना पर आलोचना की सूली पर चढ़ा देता है क्यूंकि इनकी आलोचना करने से एक तो करियर के लिहाज से कोई खतरा नही रहेगा और दूसरा बड़े पत्रकार के ख़िलाफ़ कुछ भी बोल देने से अपना भी थोड़ा बहुत प्रचार हो जाएगा,
आलोक तोमर जी पर लगाये गए मौजूदा आरोपों को इसी प्रसंग में देखा जाना चाहिए, और एक सवाल भी उन लोगों से पूछा जाना चाहिए की भैय्या क्या आपका कद इतना बड़ा हो गया है की आप प्रभाष जी और आलोक तोमर जैसे पत्रकारों पर ऊँगली उठा सकें, या फिर आपको बाकी पत्रकारों की काली करतूतें नजर नही आती, कहते हैं आलोचना करना दुनिया का सबसे आसान काम है, और बेहतर समाज की रचना करने का दावा करने वाले अपने से बुजुर्ग और सीनियर साथियों के प्रति शिष्टाचार की बुनियादी चीजों का ख़याल तक आलोचना करने के दौरान नही रख सकते क्या उनको पत्रकार कहलाये जाने का हक है, चुपचाप और शालीन पत्रकारिता करनेवाले अभिलाष खांडेकर जैसे पत्रकार पर सिर्फ़ इसलिए कीचड़ उछाल दिया जाता है क्यूंकि उन्होंने एक उस पत्रकार को संस्थान से बाहर का रास्ता दिखाने में एक पल की भी देर नही लगाई जिसने पत्रकारिता की छात्रा को बेहतर पत्रकार का सबक सिखाने के बजाय ऐसा सबक दिया जिससे शायद एक कॉम के प्रति ही विरक्ति का भाव भर दिया होगा
तथ्यों के साथ, सुबूतों के साथ और पत्रकारिता के स्याह सफ़ेद को सामने लाने की गरज रखने वाले हर पत्रकार के सवाल और आलोचना का स्वागत होना चाहिए लेकिन क्या आपने एक साईट खोल ली और स्पेस बुक करा लिया तो उसका बेजा इस्तेमाल की इजाजत किसी को दी जानी चाहिए, प्रसंग आलोक तोमर पर बेवजह कीचड़ उछालने का है, उनका उस दौर से प्रसंशक हूँ जब चड्ढी पहननी भी कायदे से नही आती थी, मैं ही नही एक पूरी पीड़ी एस पी, राजदीप, प्रभाष जी और आलोक तोमर की दीवानी है, लेकिन उनपर बेहद घटिया आरोप लगाने वालों को क्या वेब बिरादरी से बाहर का रास्ता नही दिखा देना चाहिए।
जिन आशीष अग्रवाल ने अपनी रपट चुराने का रोना रोया है उनसे विनम्रता से एक सवाल पूछता हूँ की क्या आपने इस सिलसिले में आलोक तोमर पर आरोप लगाने से पहले कोई संवाद किया था, क्या आलोक तोमर के प्रशंषकों की लम्बी लिस्ट को देखते हुए भी आपके मन में कोई भ्रम था की बजाय आप जैसे अनजान आदमी की ख़बर चुराने के वह अपने किसी जूनियर से एक इशारे भर पर सैकड़ों बेहतर खबरें तैयार करा सकते थे, डेट लाइन इंडिया जिसका कोई आर्थिक सरोकार नही है, बकौल आलोक जी वह सिर्फ़ लिखने की आलोक तोमर की क्षुधा को शांत करने का एक माध्यम भर है उस पर आपका हाय तौबा मचाना कितना उचित है, बंधू आपकी थ्योरी में कई पेंच हैं जो आपके इरादे पर शक करने का मौका देते हैं,
दूसरो को बेहतरी और भलमनसाहत के पाठ पदाने वाले पत्रकारों का अपने बुजुर्गों की छीछालेदर करना, आने वाली पीड़ी को कौन सा बेहतर सबक दे रही है, पता नही इसका जवाब कितने पत्रकारों के पास होगा,
इस प्रसंग से सिर्फ़ हम नए पत्रकारों को सबक लेना चाहिए की कीचड़ उछालू पत्रकारिता से बचिए मेरे दोस्त वरना नई पौध हमें सिवाय गालियों के और कुछ नही देगी, कहते हैं जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं, अगर अपने बुजुर्गों पर बेसबब और बेवजह गालियाँ बरसाएंगे तो यकीन जानिए नई पौध आप पर
जूते भी बरसा सकती है और तब आपके पास ये कहने के लिए भी नही बचेगा की तुमको मैंने ऐसे संस्कार तो नही दिए थे
( तो भाई ब्रजेश जी, आशीष जी और उस आरोप लगाने का खेल खेलनेवाले शख्स से यही निवेदन है की बुजुर्गों के कद और काम को अपने कद और काम से पीछे छोड़ दीजिये फिर आपकी हर आलोचना बड़े गौर से और ध्यान लगाकर सुनी जायेगी, उम्मीद है बात समझ में आएगी)
हृदयेंद्र
आज कुछ पत्रकार कालिख हाथ में लिए घूमते रहते हैं। जैसे ही किसी की प्रतिभा सामने आने लगती है, ये कालिख भरे हाथों को लेकर दौड़ पड़ते हैं। पत्रकार बनना और कुछ भी लिख देना आसान जो है। इनके कारनामों से तो भई सभी लोग त्रस्त है यहि कारण है कि पीत-पत्रकारिता की बाढ सी आ गयी है। जो साहित्यकार या पत्रकार समाज को सुधारने के लिए संकल्प लेता है वही ऐसी हरकत करे तब तो लेखक होने पर ही शर्म आने लगती है। लेकिन कितने लोग है जो आप जैसे मुँह तोड़ जवाब दे पाते हैं?
ReplyDeleteआज के इस दौर में हर कोई अपने को बड़ा समझने लगता है। जिस तरह हंस का पंख लगा लेने से कोवा हंस नही बन जाता उसी तरह प्रभाष जोशी और आलोक तोमर जैसा पत्रकार कहलाने की हसरत रखने वाला उनके कद को नही पा सकता। ब्रिजेश भाई मशहूर होने के और रस्ते बहुत हैं। किसी पर कीचड़ उछालने से पहले किसी को भी अपना कद देख लेना चाहिए।
ReplyDeleteहृदयेंद्र जी अच्छा लिखा है। असल में सम्मानितों को गाली देना तो हमारे देश में हमेशा की रीति रही है। साधारण लोग बड़ों कदों पर अंगुली उठाकर उस कद का होना चाहते हैं। लेकिन वह भूल जाते हैं कि इस कद तक पहुंचने के पीछे कड़ी मेहनत और संघर्ष की यात्रा होती हैै। प्रभाष को खूब पढ़ा है और विधार्थी जीवन में सुना भी है। मुझे खुशी है कि प्रभास जोशी जी ने किसी भी आरोप का खंडन नहीं किया। असल में कर देते तो अरोपियों का लेख सिद्ध हो जाता। वह जो चाहते थे उन्हें मिल जाता।
ReplyDeleteसस्ती लोकप्रियता विवाद में उलझने के लिए प्रेरित करती है। सच कहूं तो आपने अपने लेख में जिन महोदय का जिक्र खबर चुराने का रोना रोने के लिए किया है, इस आरोप से पहले उन्हंे शायद ही कोई जानता हो। पर आलोक तोमर जी पर आरोप लगाने के बाद उन्हें जानने वालों में फेहरिस्त मंे बेतहाशा इजाफा हो गया है। जितना उस खबर के छपने के बाद नहीं हुआ होगा। मैं ये तो नहीं जानता कि असलियत क्या है। लेकिन यह जरूर कह सकता हूं कि आशीष जी को आरोप लगाने से पहले एक बार आलोक जी से संपर्क जरूर करना चाहिए था। यह समझदारी और उनकी साफ मानसिकता उजागर करने वाली बात होती। महज आरोप लगाने से क्या होगा। सिर्फ विवाद और लोगों के अंदर की कटुता बाहर आने से इतर कुछ नहीं।
हृदयंेद जी आपने यह भी सच कहा है जो मठाधीश बनकर बैठ गए हैं, जिनके हाथ में नौकरी देने की क्षमता है उनके खिलाफ कोई नहीं बोलना चाहता है। पर इसकी क्या गारंटी है कि किसी भी मेहनतकश को यह क्षमता पाने में बहुत देर लगेगी ?
aalok tomar chambal ke sher hain .sher akela chlta hai or jangal main raj karta hai .bandaro ka kaam uchal kood hota hai jo ve hamesha karte rahenge .aalok tomar kalam ke dhani hain isliye kisi tuchhe ke prman kee jarurat nahi hai. ese logon se bas yahi kahna hai kee patrakarita main aaye ho to ptrakar bankar naam karo in byaanvaaji mse kuch haansil nahi hoga
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