सन् 2004, वो मई की एक दोपहर थी, उमस भरी। कुल जमा छत्तीस दिन के बाद मुझे लिलीपुल से जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी के एडीसी रघुनाथसिंह का फोन आया- राजमाता ने आपसे मिलने की इजाजत दे दी है, आप एक बजे पधार जाएं यहां। दरअसल भाई आलोक तोमर की एजेंसी शब्दार्थ के जरिए एक विदेशी पत्रिका के लिए ये मेरा पहला असाइनमेंट था और छत्तीस दिन में मैं उम्मीद छोड़ चुका था कि मेरी मुलाकात हो भी पाएगी। खैर, इंटरव्यू हुआ,अब तक भी, पत्रकारीय जीवन का सबसे बेहतरीन मेहनताना शब्दार्थ की ओर से मिला था इस पर, और फिर भारत में भी दो बार छपा लगभग बिना मेहनताने के।
12 अगस्त 1947 को जब जयपुर रियासत स्वतंत्र भारत में मिला दी गई,तब आपको कैसा महसूस हुआ?
मुझेअच्छा नहीं लगा क्योंकि रजवाडों के अपने गौरवशाली इतिहास हैं,रजवाड़ों के जनता के साथ बहुत नजदीकी संबंध रहे हैं। मांबाप के जैसा रिश्ता था,लोग आजकल ये भूल जाते हैं। जब कभी रामबाग आते थे,ढेरों लोग खड़े रहते थे,लोग दरबार से पूछते थे,कहते थे-अन्नदाता, अनाज नहीं है, ये नहीं है, वो नहीं है, नई सरकार के आते ही उठते बैठते टैक्स लगता है, ऐसी बातें करते थे। हम अब उनके लिए कुछ नहीं कर सक ते थे।
इसलिए कि राजा जी नहीं रहे। स्वतंत्र पार्टी के सिद्धांत मुझे पसंद थे-स्वतंत्र भारत,स्वतंत्र जनता, सब कुछ स्वतंत्र। पंडित जी की मैं बहुत इज्जत करती थी,हर चीज को स्टेट में ले लिया,जनता को को ई आजादी नहीं थी,ये करो तो फॉर्म वो करो तो फॉर्म।एक बार जब राजाजी कांगे्रस में थे,नागपुर में पंडित जी ने क हा-आपकी जमीन भी हम ले लेंगे। राजा जी ने क हा कि किसानों के खेत नहीं लेन चाहिए। अगर आप ऐसा क रते हैं तो आपके विरोध में एक पार्टी बनाउंगा जो स्वतंत्र भारत, स्वतंत्र जनता के लिए। आप उम्र में बहुत छोटे हैं,आपको मालूम नहीं होगा कि पर्चे बांटे गए थे,पाठ्य पुस्तको ंमें लिखा गया था कि जमीन सरकार की इसलिए राजा जी ने पार्टी बनाई।1970 में आखिरी बार चुनाव लड़ा।दरबार भी नहीं थे,इंदिरा गांधी ने चुनाव मतदाता सूची में जिनके के आगे सिंह था,नाम क टवा दिये।रामबाग का राजमहल जिसमें हम रहते थे,उसके स्टाफ तक का नाम काब् दिया गया। कुचामन जहां से मैंने चुनाव लड़ा वहां भी ऐसा ही हुआ।
हजारों चीजें हैं, एमजीडी स्कूल, सवाई मानसिंह स्कूल, एक चांद शिल्पशाला जहां लडकियां दस्तकारी सीखती हैं,और गलता के पास एक गांव में जग्गों की बावड़ी में एक स्क ूल है। गरीब बच्चों के लिए। मेरी चैरिटी भी है। बहुत कुछ है। कुछ ना कुछ करती रहती हूं।
दर्शन वर्शन कुछ नहीं है, मैं तो सामान्य सी इनसान हूं, को ई फिलास्फी-विलॉस्फी नहीं है।
मैं राजकुमारी की तरह पैदा हुई और महारानी हो गई,इसलिए नहीं जानती कि आम आदमी केसा होता हैं,सिर्फ महसूस कर सक ती हूं। पर मुझे लगता है कि इनसान तो इनसान होता है, मैं मानती हूं कि आम आदमी की तरह स्कूल गई। शांति निकेतन में पढी ,वहां आम थी,खास नहीं थी।
राजशाही अच्छी थी,हर जगह तो नहीं पर क ई जगह तो बहुत ही अच्छी थी।जैसे मेरे नानो सा सयाजीराव गायक वाड़ का राज बहुत ही अच्छा था।अंबेडकर को किसने पढाया,बनाया,उन्होंने ही ना। मेरे पीहर में भी अच्छा था,हिंदू मुस्लिम प्यार से साथ रहते थे। जयपुर में भी ऐसा ही था,दरबार हमेशा कहते थे हम जो कुछ भी हैं,जयपुर की वजह से हैं,जो कुछ भी हमारे पास है,जयपुर की वजह से है,सब जयपुर को देना है,लोग उनको बहुत मानते थे।
बेशक जयपुर !
बहुत हैं,हर साल जाती हूं अब भी।इस साल कुछ कारणों से देर हो गई,शायद अक्टूबर नवंबर में जाऊं पूजा के समय।
बेटे महाराजा जगत सिंह का लडक़ा मेरा पोता देवराज यहीं हैं,उसने बीए किया है, शायद दिल्ली से मास्टर्स क रेंगे।पोती लालित्या अपनी मां के पास बैकॉक में रहती हैं, इन दिनों वो भी यहीं हैं, उसने मास्टर्स किया है।
आप गिरधारीलाल भार्गव के नामांकन के समय उनके साथ थीं,राजनीति में अब भी रुचि है?
उन्होंने बुलाया तो मैं गई थी, कोई रुचि नहीं अब राजनीति में,मैं तो बस यह चाहती हूं जयपुर की जनता खुश रहे, खुशहाल रहे, ये भी चाहती हूं को ई उनके लिए कुछ क रे, मैं उम्मीद क रती हूं कि वसुंधरा राजे कुछ क रेंगी क्योंकि वे अच्छे परिवार से हैं,समझती हैं,देखते हैं क्या क रतीं हैं?
उन्हें हम गुरूजी क हते थे,मैं उनके पास जाती थी,बहुत जाती थी,एक बार उन्होने मुझसे कहा कि आपने डांस क रना क्यों छोड़ दिया,मैंने कहा:वो टेनिस का समय है,मुझे टेनिस बहुत पसंद है। उन्होने कहा-लड़कियों को नाचना चाहिए।
किसने क हा? ये सही नहीं है।
नहीं, नहीं, मेरी मां बहुत खूबसूरत थीं, मेरे पिताजी बेहद खूबसूरत थे, मेरे भाई बहिन भी सुंदर थे।
अगर सेहत साथ दे तो कुछ और क रने की इच्छा है?
कुछ नहीं अब क्या क र सक ती हूं ?
(युवा लेखक पत्रकार दुष्यंत इन दिनों जयपुर में डेली न्यूज अखबार की सन्डे मैगजीन के इंचार्ज हैं कही अनकही नाम से ब्लौग लिखते हैं )
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