-देवेन्द्र शर्मा-
वो युग का बीत चुका है जब महिला की पहचान सिर्फ गृहिणी के रूप में हुआ करती थी। अब कॉर्पोरेट वर्ल्ड से लेकर राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पदों पर महिलाएं राज कर रही हैं। संक्षेप में ये कहना ठीक होगा कि धरती से लेकर चांद तक महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला रही हैं। ये तो हुआ महिलाओं की स्थिति का एक पहलू। अब मैं कहूं कि देश में कब सुधरेगी महिलाओं की स्थिति। शायद आपको लग रहा होगा कि भला किन महिलाओं की बात हो रही है अब। मैं बात कर रहा हूं उन महिलाओं की जिनके लिए आज भी ये सब बातें कल्पना से भी दूर हैं। शुरूआत एक ताजा घटनाक्रम से करता हूं। बच्चियों को स्कूल भेजने के पीछे मां बाप कई सपने संजोए रहते हैं। मां बाप के साथ ही हर लड़की के भी सपने होते हैं। लेकिन सपनों को पूरा करने और उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए उन्हें को क्या क्या झेलना पड़ता है। इसके अंदाजा शायद ही किसी को हो।स्कूल जाते वक्त रास्ते में मनचले युवकों द्वारा हर रोज काल्पनिक बलात्कार झेलती हैं लड़कियां। उन पर भद्दी टिप्पणियां की जाती हैं लेकिन लड़कियां खून के घूंट पीकर रह जाती हैं क्योंकि उन्हें डर होता है बदनामी का और फिर एक दिन का काम तो नहीं है , स्कूल तो रोज जाना ही है। खैर स्कूल पहुंचकर चैन की सांस लेती हैं कि चलो आज तो पीछा छूटा। लेकिन स्कूल में उन्हें इससे भी शर्मनाक स्थिति झेलनी पड़े तो भला क्या होगा उनका। किताबी और नैतिक ज्ञान के बजाय सरस्वती के मंदिर में उनके कपड़े उतरवाए जाएं तो कहां जाएंगी वो।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के एक स्कूल में एक कुंठित टीचर ने ऐसी ही करतूत की छात्राओं से। ड्रेस का नाप लेने के बहाने जबरन बच्चियों के कपड़े उतरवा डाले कुंठित शिक्षक ने। गुरू शिष्य का रिश्ता तार तार होने का ये पहला मामला नहीं है लेकिन अपने तरह का नया मामला जरूर है। टीचर ने अपनी बेटी की उम्र की छात्राओं के कपड़े उतरवा डाले स्कूल में। इस घटना के बाद टीचर को भले ही शर्म नहीं आ रही हो लेकिन नारी होने के नाते उसकी पत्नी और बेटी को जरूर शर्मनाक स्थिति झेलनी पड़ रही होगी।
लड़कियों के लिए जिंदगी हर कदम पर एक नई जंग है। या यों कहें कि जब वो इस दुनिया में भी नहीं आती हैं तभी से जिंदगी से उनकी लड़ाई शुरू हो जाती है। कई मामलों में कोख में ही उनका कत्ल कर दिया जाता है। जहां पता नहीं चलता वहां लड़की के जन्म पर मातम मनाया जाता है। उसे ताने दिए जाते हैं, प्रताड़ित किया जाता है और उसके साथ साथ उसके सपनों को भी पिंजरे में कैद कर दिया जाता है। एक ही घर में लड़के और लड़की में भेदभाव किया जाता है। खैर जैसे जैसे वो बड़ी होती है उसे घर के बाहर कई गंदी नजरों के वार झेलने पड़ते हैं। भले ही बाजार जाना हो, मंदिर जाना हो या फिर स्कूल जाना हो।
ऐसा नहीं है कि मंजिल पर पहुंचकर इनका संघर्ष खत्म हो जाता है। बल्कि स्कूल जैसी जगह पर भी ये सुरक्षित नहीं हैं। इसका उदाहरण मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के एक स्कूल की घटना के रूप में आपके सामने है, जिसका जिक्र ऊपर कर चुका हूं। कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश में ही एक सरकारी योजना में लड़कियों को कौमार्य परीक्षण से गुजरना पड़ा। आखिर कब तक झेलनी होगी महिलाओं को ये शर्मनाक स्थिति। आगे की बात करें तो, जब लड़की सयानी हो जाती है तो उसकी शादी कर दी जाती है। इस वक्त भी उससे उम्मीद की जाती है कि ससुराल में किन बातों का ख्याल रखना है लेकिन सब कुछ याद रखने के बाद भी ज्यादातर मामलों में ससुराल वालों के ताने झेलने ही पड़ते हैं। बदकिस्मती के कोई गलत परिवार मिल जाए तो दहेज के लिए या फिर किसी और वजह से बहू (लड़की) को जलाकर मारने से भी परहेज नहीं किया जाता। एक स्थिति वो होती है जब कोशिश की जाती है कि लड़की कोख में ही मार दी जाए, और एक स्थिति वो जब उसे जिंदा जला दिया जाता है।
यानि या तो लड़की पैदा ही न हो और अगर हो गई तो उसकी जिंदगी पर हर वक्त खतरा मंडराता रहता है। फिर भी लड़की सब कुछ झेलकर भी चुप रहती है। लेकिन ये बात समझ नहीं आती कि जो मां या सास अपनी बेटी या बहू से ऐसा बर्ताव करती हैं वो ये क्यों भूल जाती हैं कि खुद भी एक महिला हैं। देश में ये हालात तब हैं जब राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ हर राज्य में भी महिला आयोग सक्रिय है। मध्यप्रदेश महिला आयोग की एक सदस्य ने तो हाल ही में ये भी कहा है कि महिलाओं के मामले में पुलिस मदद नहीं करती और आयोग के पास आने पर ही ज्यादातर मामले निपटते हैं। तो आखिर लड़कियां क्यों न कहने को मजबूर हों कि अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो।
(देवेन्द्र शर्मा, असिस्टेंट प्रोड्यूसर, वॉइस ऑफ इंडिया न्यूज़)
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