ग़ज़ल
कोई बात नहीं चुभती है अब तो मन में |
कितना अनमन है, आलस्य भरा है मन में |
अनाचार अतिचार अनय,है चहुँ दिशि फैला ,
क्यों यह विष की बेल फूलती सकल भुवन में |
भ्रमर गीत अब नहीं, न पंछी कलरव करते ,
मुरझाये हर कली,पुष्प ,तरु आज चमन में |
हिंषा-द्वेष ओ द्वद्व -बैर सब और समाया,
नहीं आस्था रही किसी की आज अमन में |
गला काटने वालो ,हाथ मिलाओ,गले लगो तो,
कितना सुख-आनंद भरा इस प्रीति-छुअन में |
धुंध,धुंआ, विध्वंस मिटे ,जग से जीवन से,
प्रेम-प्रीति की सुरभि , बहे उन्मुक्त गगन में ||
bahut hi achha likh hai.. great
ReplyDeleteधुंध,धुंआ, विध्वंस मिटे ,जग से जीवन से,
ReplyDeleteप्रेम-प्रीति की सुरभि , बहे उन्मुक्त गगन में ||
बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल
गला काटने वालो ,हाथ मिलाओ,गले लगो तो,
कितना सुख-आनंद भरा इस प्रीति-छुअन में |
वाह !
जय हो !
jay ho, jay jay ho.
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