( जन्म 13 नबम्वर 1917,मृत्यु 11 सितम्बर 1964 )
(आज मुक्तिबोध का जन्मदिन है, देशकाल डॉट कॉम पहली वेबसाइट है जो इंटरनेट पर मुक्तिबोध का जन्मदिन एक सप्ताह तक मनाएगी,यह सुझाव मेरे दिमाग में अचानक आया और मैंने यह प्रस्ताव देशकाल डॉट कॉम के संपादक मुकेश कुमार जी को लिख भेजा,उन्होंने सहर्ष मान लिया और अब आप देश काल डॉट कॉम पर जाएं और विस्तार के साथ मुक्तिबोध नेट सप्ताह का आनंद लें। 'नया जमाना' पर भी इन सात दिनों में आपको मुक्तिबोध पर सामग्री मिलेगी,प्रस्तुत लेख देशकाल डॉट कॉम के लिए ही लिखा गया है जिसे यहां अपने पाठकों को पेश करते हुए खुशी हो रही है,यह सामग्री सात दिनों तक भड़ास ब्लॉग के पाठकों को भी उपलब्ध रहेगी। हम चाहते हैं लोग ज्यादा से ज्यादा इस सामग्री का इस्तेमाल करें। हम दिन में तीनबार नई सामग्री देंगे,आप लोग भी खुलकर मुक्तिबोध चर्चा करें,जो कुछ भी चाहें लिखें,आपका स्वागत है,मुक्तिबोध हम सबके थे,आज उनका जन्मदिन है,चलो कुछ लिखें जरूर,मुक्तिबोध के विचार,कविता,विचार जो भी अच्छा लगे लिखें. )
आज मुक्तिबोध का जन्मदिन है। इंटरनेट पर मुक्तिबोध का आना नयी घटना नहीं है। मुक्तिबोध के युवा भक्तों ने अनेक स्थलों पर मुक्तिबोध का प्रचार किया है। अभी ये लोग मुक्तिबोध की परंपरा का विकास कर रहे हैं। मुक्तिबोध के बारे में इंटरनेट पर सप्ताहव्यापी चर्चा करने का मकसद है इंटरनेट के युवा ई लेखकों और पाठकों से हिन्दी के श्रेष्ठतम कवि,विचारक और आलोचक से परिचय कराना। मुक्तिबोध को आमतौर पर सिर्फ हिन्दी पढ़ने पढ़ाने वाले ही जानते हैं। मुक्तिबोध स्वातन्त्र्योत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यकार,विचारक और प्रेरक हैं।
इंटरनेट की हिन्दी लेखन की गतिविधियां बेहद उत्साहजनक हैं। इनमें गुणवत्तापूर्ण साहित्य चर्चा भी खूब होती रहती है। अनेक लेखक हैं जो निरंतर नेट पर कविताएं लिखते रहते हैं। आज मुक्तिबोध होते तो नेट देखकर सबसे ज्यादा खुश होते। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और हाशिए के लोगों का मुक्तिबोध सबसे बड़ा लेखक है। संभवत: अभिव्यक्ति की आजादी और पुराने गढ़ और मठ तोड़ने की आकांक्षा जितनी प्रबल मुक्तिबोध में थी वैसी अन्य किसी में नहीं थी। अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र को गरीबों के हित में इस्तेमाल करने की विचारधारा के वे प्रबल पक्षधर थे।
नेट पर मुक्तिबोध को लाने का प्रधान मकसद है अतीत और वर्तमान दोनों की बेबाक मीमांसा करना। आज के दौर में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, विचारक हैं, राजनीतिज्ञ हैं जो देश को अतीत में ले जाना चाहते हैं,नेट पर भी ऐसे लोग हैं जो स्वभावत: अतीतप्रेमी हैं।
नेट लेखकों और यूजरों की केन्द्रीय विशेषता है कि वे स्वप्नचर होते हैं। इनमें अच्छा खासा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो इस संसार के दुखों से बेखबर नेट पर रमण करते रहते है। उन्हें राजनीति ,अर्थनीति और संस्कृति आदि की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें अपने शहर ,प्रान्त और देश की गंभीर ज्वलंत समस्याओं के बारे में भी कोई खास दिलचस्प नहीं है। ये ऐसे ई लेखक और ई पाठक हैं जो संचार के लिए संचार की धारणा से प्रभावित और संचालित हैं। उनका समाज के प्रति बेगानापन इस बात का भी संकेत देता है कि हमें संचार को सिर्फ संचार के रूप में लेना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए मुक्तिबोध की महत्ता सबसे ज्यादा है । मुक्तिबोध ने संचार और साहित्य के अराजनीतिक और सहज अनुभूतिपरक लेखन और रवैयये की तीखी आलोचना की है।
नेट यूजरों की संचार की राजनीति और संचार के अर्थशास्त्र में न्यूनतम दिलचस्पी होती है। यह चीज सहज ही हिन्दी के ब्लॉग लेखन को एक नजर देखकर समझ में आ जाएगी। मुक्तिबोध की आज महत्ता यह है कि उन्होंने संचार को राजनीति से जोड़कर देखा था, संचार के विचारधारात्मक आयामों की विस्तार के साथ अपने लेखन में चर्चा की है।
जिनकी नेट में दिलचस्पी है। वे नेटकर्म को ही वे कर्मण्यता की निशानी मान रहे हैं। ऐसे नेट यूजरों और ई लेखकों की दिलचस्पी के दायरे में सामाजिक सरोकारों,सामाजिक सक्रियता,सामाजिक शिरकत, नीतिगत सरोकारों आदि के प्रति दिलचस्पी जगाने के मकसद से मुक्तिबोध नेट सप्ताह मनाने का फैसला लिया गया।
मुक्तिबोध को नेट पर विमर्श के केन्द्र में लाने का दूसरा बड़ा मकसद है हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचकों को नेट पर लाना। हम देखना चाहते हैं कि आखिरकार हमारे वरिष्ठ आलोचक और साहित्यकार आज के समय के बारे में क्या सोच रहे हैं। जहां तक मुझे याद आ रहा है कि यह किसी भी मीडिया में हिन्दी के किसी साहित्यकार पर स्वयं अनूठा प्रयास है। किसी भी साहित्यकार को हमारे मीडिया ने सप्ताहव्यापी आयोजन करके जनप्रिय नहीं बनाया। मीडिया में साहित्य तो छपता रहा है लेकिन किसी साहित्यकार का जन्म दिन सात दिन तक मनाया जाए वह भी नेट पर,यह अपने आपमें नयी घटना है। हम चाहते हैं कि हिन्दी के और भी ब्लॉग और वेबसाइट इस दिशा में प्रयास करें और ज्यादा से ज्यादा साहित्य और साहित्यकारों को नेट पर लाकर प्रतिष्ठित करें।
मुक्तिबोध को नेट पर लाने का तीसरा प्रधान कारण है हमारे साहित्यकारों में विदेशी विचारों के प्रति बढ़ता हुआ प्रबल आग्रह। इस आग्रह को हम खासकर आलोचना,राजनीति और अर्थनीति के क्षेत्र में खूब महसूस करते हैं। विदेशी विचार,संस्कृति,जीवनशैली,खान-पान, आचार व्यवहार,विचारधारा आदि के प्रति जिस तरह अंधभोगवाद पैदा हुआ है उसने गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। हमारे बच्चे ,तरूण,युवा और औरतें एकसिरे से भारत के साहित्य ,संस्कृति और साहित्यकारों से अपरिचित हैं। यह अपरिचय कम हो यही मूल मकसद है।
मुक्तिबोध को नेट पर लाने का चौथा कारण यह है कि हमारे नेट यूजर लगातार व्यक्तिवादी होते चले जा रहे हैं। व्यक्तिवाद को कैसे रूपान्तरित करके सामाजिक शक्ति और सामाजिक रूपान्तरण का अंग बनाया जाए इस मामले में मुक्तिबोध हमारे पथप्रदर्शक हो सकते हैं।
आज प्रत्येक चीज 'ट्रांस' या रूपान्तरण की अवस्था में है ऐसे में मुक्तिबोध की 'ट्रांस इण्डिविजुअलिज्म' की धारणा बेहद महत्वपूर्ण है। व्यक्तित्व के विस्तार के लिए यह धारणा बेहद जरूरी है। मुक्तिबोध ने लिखा है '' हम एक व्यक्ति को प्यार कर संसार से अलग क्यों हटें,हमें अपना अनुराग दुखी संसार पर बिखेर दिना चाहिए। हमें संसार को कोसना नहीं चाहिए।'' मुक्तिबोध का मानना था '' जन-साधारण के लिए एक ऐसी फ़िलासफ़ी की जरूरत होती है जो उन्हें जीवन के प्रति अधिक ईमानदार करे। साथ ही उनमें एक ऐसी नैतिकता का जन्म हो जिनमें उनकी बुद्धि स्वतन्त्रतापूर्वक खेलती रहे। बाहरी दृष्टि से सत्पथ पर ले जाने वाली निर्बुद्ध निष्ठा कुमार्ग पर ले जानेवाली स्वतन्त्र बुद्धि की अपेक्षा अधिक हानिकारक होती है। ''
मुक्तिबोध सप्ताह के दौरान हम विभिन्न विद्वानों के द्वारा मुक्तिबोध का नेट मूल्यांकन पढ़ेंगे। मुक्तिबोध की रचनाओं के अंश भी पढ़ेंगे। साथ ही कला,साहित्य,संचार,स्त्री,युवा समुदाय आदि की अत्याधुनिक समस्याओं पर मुक्तिबोध के नजरिए को जानने का प्रयास करेंगे।
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