गरीब और किसान परिवार में (10 अगस्त 1981 को) जन्में गोपाल सुथार, कब कला जगत के लिये गुलशन कुमार बन गये, पता तो नहीं चला मगर हां ये नाम सफर बुलन्दी की ओर ही ले जाने का रास्ता दिखाता नजर आता है। पिता बंशीलाल के परिवार में दो बड़े भाइयों और एक छोटे भाई सहित इकलौती बड़ी बहन के साथ बड़े हुए गुलशन को अपनी माँ का सानिध्य, उम्र के शुरूआती पांच-छः बरसों तलक ही मिल पाया। परिस्थितियां उन्हें औपचारिक पढ़ाई से दूर कर गई लेकिन अपनी ज़िद के पक्के गुलशन ने चित्रकारी का ये हुनर गांव से आठ किलोमीटर दूर पैदल चलने पर पड़ने वाले बेगूं में आते-जाते सीख ही लिया। उन्होंने आरम्भिक शिक्षा महाराणा सज्जनसिंह सम्मान से पुरस्कृत चित्रकार किशन शर्मा से पाई जिन्हें कभी अपनी बारिक चित्रकारी के लिये तात्कालिक राष्ट्रपति डाॅ. शंकर दयाल शर्मा ने भी पुरस्कार से सम्मानित किया था। लगभग तीन साल की इस गुरूकुल प्रणाली की शिक्षा दीक्षा के बाद ज़िन्दगी की असल चित्रकारी की यात्रा शुरू हुई।
बाद का समय कभी निःशुल्क रूप से विकलांग बच्चों को चित्रकारी सीखाने, उनकी सेवा करने और यदाकदा मिलने वालों के लिये कुछ कलापरक काम करने में गुजरता रहा। अचानक भाग्य से जयपुर के प्रसिद्ध कलागुरू अमीर अहमद के साथ काम करने और उनसे सीखते हुए मुम्बई और हैदराबाद में काम करने का मौका मिला। वक्त के साथ गुलशन को चित्तौड़गढ़, कोटा और जयपुर के साथ दिल्ली में भी अपनी कला दिखाने का असवर प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने अपनी मेहनत का परिचय दिया। इस यात्रा में कई कलाप्रेमी, व्यावसायियों और विदेशी कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इस तरह गुलशन कुमार, हैरिटेज होटल, फ्लेट, आर्ट गैलेरीज़ में बेहतर काम करने और अपनी कार्यशालाओं के जरिये पहचाने जाने लगे।
इस यात्रा में चित्तौड़गढ़ की मेवाड़ एज्युकेशन सोसायटी, विज़न स्कूल आॅफ मेनेजमेन्ट, संस्कृति अकादमी जिला प्रशासन और स्पिक मैके जैसे कलावादी आन्दोलन ने सहयोग दिया। खुले रूप में एक बात तो यही कही जायेगी कि गुलशन अपनी लगातार मेहनत, लगन और कठोर परिश्रम के बूते ही आगे बढ़ रहे हैं। बिना किसी बड़े सहयोग के अब तक का ये सफर तय करने वाले गुलशन की हाल ही में आठ नवम्बर, 2009 को चित्तौड़गढ़ में पेन्टिंग एग्जिबिशन लगाई गई। जिसमें चित्तौड़गढ़ की नवीन रूप से स्थापित कलामंत्र आर्ट गैलेरी का मुख्य सहयोग रहा। कई सारे शैक्षणिक संस्थानों में अपनी चित्रकृतियां निःशुल्क रूप से भेंट करने वाले गुलशन ने कई बार कुछ ही मिनटों में चावल के दाने पर लम्बे नाम लिखकर अपनी कलाकारी का परिचय दिया है। कभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मेवाड़ घराने के राजकुमार लक्ष्यराज सिंह को अपनी कृति भेंट करने वाले सुधांशु महाराज के आनन्दधाम आश्रम में भी चित्रकारी कर चुके हैं।
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